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श्रीवीरविजयजीकृत पंचकल्याणक पूजा. १५७
॥ अथ ॥
॥ जन्मकल्याण के पंचम चंदनपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ मृतपाने या, रमता पासकुमार ॥ अहिलंबन नव कर तनु, वरते अतिशय चार ॥ १ ॥ यौवन वय प्रभु पामता, मात पितादिक जेह ॥ परपावे नृपपुत्रिका, प्रजावती गुणगेह ॥ २ ॥ चंदन घसी घनसारशुं, निज घर चैत्य विशाल ॥ पूजोपकरण मेलवी, पूजे जगत्दयाल ॥ ३ ॥
॥ ढाल || बालपणे योगी हुआ, माइ जिक्षा धोने ॥ ए देशी ॥
॥ सोना रूपाके सोगठे, सांयां खेलत बाजी ॥ इंद्राणी मुख देखते, हरि होत हे राजी ॥ १ ॥ एक दिन गंगा के बिचे, सुर साथ बहोरा ॥ नारी चकोरा अप्सरा, बहोत करत निहोरा ॥ २ ॥ गंगाके जल कीलते, बांदी बादलीयां ॥ खावन खेल खेलायके, सवि मंदिर वलीयां ॥ ३ ॥ बेठे मंदिर मालीये, सारी श्रालम देखे || हाथ पूजापा ले चले, खानपान
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