Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा को संकेतित करती है। 'वसुदेवहिण्डी' के वसुदेव की पत्नी गन्धर्वदत्ता चम्पानगरी के चारुदत्त सेठ की पुत्री है, परन्तु बुधस्वामी के 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' की मदनमंजुका वणिक्पति सानुदास की त्रैलोक्यसुन्दरी पुत्री है । कश्मीरी नव्योद्भावनों में दोनों के पिता गन्धर्वनरेशं हैं। बुधस्वामी ने मदनमंजुका के पालक पिता सानुदास की आत्मकथा को समुद्री यात्रा में पराक्रम करने की रसपूर्ण कथा के रूप में उपन्यस्त किया है। इस अंश की तुलना आश्चर्य से अभिभूत करनेवाली अलिफ लैला की कहानियों के साथ की जा सकती है। किन्तु कश्मीरी नव्योद्भावनों में यह पूरी कथा छोड़ दी गई है । 'वसुदेवहिण्डी' की कथावस्तु इस अंश में बुधस्वामी से मिलती है, कुछ अंश तो इससे भी अधिक रसघनिष्ठ हैं।
बुधस्वामी के 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' और संघदासगणी की 'वसुदेवहिण्डी' में न केवल कथासाम्य है, अपितु शब्दों और वाक्यों के प्रयोग में भी विस्मयकारी समानता है। 'वसुदेवहिण्डी' में, विद्याधरों का मुख्य आवास 'वेयड्ड' (सं. वैताढ्य) पर्वत की उत्तर और दक्षिण श्रेणियों में प्रतिष्ठित दिखलाया गया है और 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' में उसे ही 'वैतर्द्ध-क्षेत्र के रूप में संज्ञित किया गया है। दोनों कथाकारों ने 'बृहत्कथा' से पैशाची भाषा के इस शब्द का अपने-अपने ढंग से प्राकृत और संस्कृत के भाषिक परिवेश में परिग्रहण किया है। 'वसुदेवहिण्डी' के चौथे नीलयशालम्भ की ललितांग-कथा के स्वयम्बुद्ध की इस उक्ति–“न जुद्धे संपलग्गे कुंजर-तुरगदमणं कज्जसाहगं।” (पृ. १६८ : पूरे ग्रन्थ में 'वसुदेवहिण्डी' के भावनगर-संस्करण के आधार पर पृष्ठ-संख्याएँ सन्दर्भित हैं ) का शब्दभावसाम्य 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' के निम्नांकित श्लोक में देखा जा सकता है :
तेनोक्तं युद्धवेलायां दम्यन्ते तुरगा इति ।
यदेतद् घुष्यते लोके तदेतत्तथ्यतां गतम् ।। (१०.६७) _ 'वसुदेवहिण्डी' के गन्धर्वदत्तालम्भ की, चारुदत्त की आत्मकथा में शल्योपचार के लिए तीन प्रकार की ओषधियों की चर्चा है : विसल्लकरणी, संजीवणी और संरोहिणी । 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' में इसके पाँच रूप हैं :
विशल्यकरणी काचित्काचिन्मांसविवर्द्धनी। व्रणरोहणी काचित्काचिद्वर्णप्रसादनी ॥
मृतसञ्जीवनी चासां पञ्चमी परमौषधिः । (९.६४-६५) 'वसुदेवहिण्डी' के तीसरे 'गन्धर्वदत्तालम्भ' की 'चारुदत्त की आत्मकथा' का यथावत् बिम्ब 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' के 'पुलिनदर्शन' नामक नवम सर्ग में प्रतिबिम्बित है। इसी सर्ग में तथा 'दोहद-सम्पादन' नामक पंचम सर्ग में अंकित ‘पद्मभंजिका' या 'पत्रच्छेद्य' जैसी लोकसमादृत कला (कमलपत्रों पर नाखून से विविध प्रकार के चित्रों की अंकन-कला) 'वसुदेवहिण्डी' के 'धम्मिल्लचरित' (पृ. ५८) तथा 'गन्धर्वदत्तालम्भ' (पृ. १३४) में भी अद्भुत समानता के साथ प्रत्यंकित है। जैनकथा-साहित्य में प्रचुरता से प्रयुक्त भारुण्ड' पक्षी, जिसे बुधस्वामी ने गरुड़ का ज्येष्ठ पुत्र कहा है, 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' के पंचम सर्ग में भी चर्चित हुआ है। १. तसर के व्यापार के लिए प्रसिद्ध वर्तमान चम्पानगर, भागलपुर (बिहार)