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व माणचरिउ
भगवान् पार्श्वनाथका जन्मोत्सव मनाया जा रहा है, सभी देशोंमें उसका शुभ समाचार जा चुका है । नरेशोंने जैसे ही उसे सुना, वे नरेशोचित तैयारियोंके साथ प्रभु-दर्शन की उत्कण्ठासे वाराणसीकी ओर चल पड़ते हैं । जिन २६ देशोंके नरेश वहाँ पधारे उनकी नामावली निम्न प्रकार है:
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कण्णाड लाड खस-गुज्जरे हिं बं गंग-कलिंग-सु मागहिँ चंदिल्ल-चोड - चउहाणएहिं रढ्ढउड-गउड-मायासाहि यहि णाणाविह णरवरेहिं
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मालव- मरहट्ठय- वज्जरेहिं । पावइय-टक्क - कच्छाव हेहिं । सेंधव-जालंधर-हूणएहिं । कलचुरिय-हाण - हरियाणएहि । करवाल-लया-भूसिय करेहिं ।
उक्त उल्लेखसे १२-१३वीं सदी के राजनीतिक भारतका अच्छा चित्र मिल जाता है । उल्लिखित देश, नगर तथा राजवंश उस समय पर्याप्त ख्याति एवं प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुके थे ।
राजकुमार पार्श्व जब युद्धमें जाने की तैयारी करते हैं, तो उनकी सहायताके लिए सारे राष्ट्रसे जयघोष होता है । विविध देशोंके पुरुषोंने तो उन्हें तन-मन एवं धनसे सहायता की थी, महिलाएँ भी दान देने में पीछे न रहीं । १२वीं सदी में किस देशकी कौन-कौन सी वस्तुएँ विशिष्ट मानी जाती थीं, उसपर भी अच्छा प्रकाश पड़ता है । देखिए, कविने उस प्रसंगका कितना अच्छा वर्णन किया है
सम्माण इँ दाणे णिवसमूह हारेण कीरु मणि- मेहलाएँ जालंधरु पालवेण सोणु केकरे सेंधव कंकणेहिँ मालविउ पसाहिउ कुंडले हिँ खसु णिवसणेहिं णेवालराउ का वि अपि मयमत्तु ढंति कासु वि उत्तुंगु तरलु तुरंगु कासु वि रहु करहु विष्णु कासु
-पास २।१८।९।१३ |
चंडासि विडिय कुंभि जूह | पंचाल - टक्कु - संकल- लयाएँ । मउडेण णिवद्ध सवाण - तोणु । हम्मीरराउ रंजिय भणेहिँ । णिज्जिय णिसि दिणयर मंडलेहिं । चूडारयणेण महीरराउ । णं जंगम महिहरु फुरियकंति । णावइ खय-मयरहरहो तरंगु । जो जेत्थ दच्छु तं दिष्ण तासु ।
- पास. २1५1३-११
युद्धके लिए जानेकी तैयारी करते हैं कि आप युद्ध में स्वयं न जाकर मुझे
राजा हयसेन जब राजा शक्रवर्माकी सहायता हेतु यवननरेन्द्रसे और कुमार पार्श्वको इसका पता चलता है, तो वे पिता हयसेनसे कहते हैं जानेका अवसर दें । हयसेन जब उन्हें सुकुमार एवं अनुभवविहीन बालक कहते हैं, तो बालक पार्श्वका पौरुष जाग उठता है तथा वे अपने पितासे निवेदन करते हुए कहते हैं
जइ देहि वप्प तुहुँ महु वयणु वंधव-यण-मण सुह जण । ता पेक्खंत तिहुयण जणहँ कोऊहलु विरयमि जणणा ।
हयलु तलि करेमि महि उप्परि णाय पहार गिरि संचालमि इंदो इंद धणुहु उद्दालमि
- पास २।१४।१५-१६ वाउ वि वंधमि जाइण चप्परि । नीरहिणीरु णिहिल पच्चालमि । फणिरायहो सिरि सेहरु टालमि | आदि ।
- पास. ३।१५।१-१२
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