Book Title: Uttaradhyayanani Purvarddha
Author(s): Chirantanacharya, Kanchanvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 321
________________ XoxoxotoXXOXOXOXOXXX खेविअंति-खिन्नं-खेदः क्लेशोऽनुभूतः, क्षपितं वा पापमिति गम्यते, कैः कर्षणापकर्षणैः परमाधार्मिककृतैः दुष्करं-अतिदुस्सहमिदमिति शेषः ॥ ५२ ॥ ६५२ ॥ महाजंतेसु उच्छू वा, आरसंतो सुभेरवं । पीलिओमि सकम्मेहिं, पावकम्मो अणंतसो ॥ ६५३ ॥ वाशब्दः-उपमार्थे, तत इक्षुरिव आरसन्-आक्रन्दन् स्वकर्मभिः हिंसाधुपार्जितैर्ज्ञानावरणादिमिः, पापकर्मा-पापानुष्ठानः X॥५३॥ ६५३ ॥ कृवंतो कोलसुणएहिं, सामेहिं सबलेहि य । पाडिओ फालिओ छिन्नो, विप्फुरंतो अणेगसो॥ ६५४ ॥ कूजन कोलसुणएहिति-शूकररूपधारिभिः श्यामः शवलैः-परमाधार्मिकविशेषैः पातितो भुवि, पाटितो जीर्णवस्त्रवत्, | छिन्नो वृक्षवदुभयदंष्ट्राभिरिति गम्यते, विस्फुरन्-इतस्ततश्चलन् ॥५४॥ ६५४ ॥ असी(अरसा पा०)हिं अयसिवण्णेहिं, भल्लीहिं पट्टिसेहि य । छिन्नो भिन्नो विभिन्नो य, उववन्नो (उइण्णो पा०) पावकम्मुणा ॥ ६५५॥ असिभिः-खड़ेः अतसीपुष्पवर्णाभिः-कृष्णाभिः पट्टिशैश्च-प्रहरणविशेषैश्छिलो-द्विधाकृतः भिन्नः-विदारितो विभिन्नः सूक्ष्मखण्डीकृतः, यद्वा छिन्न ऊर्ध्व भिन्नः तिर्यग् विभिन्नो विविधैः-प्रकारैः ऊर्ध्व तिर्यक्, उपपन्नं-अवतीर्णः सन् , नरके इति | गम्यं, पापकर्मणा हेतुना ॥ ५५ ॥ ६५५ ॥ अवसो लोहरहे जुत्तो, जलते(त. पा०) समिलाजुए। चोइओ तुत्तजुत्तेहि, रुजसो वा जह पाडिओ ॥ ६५६॥ नरके दुस्सहा वेदना M Jain Education ilinelibrary.org For Privale & Personal use only a l

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