Book Title: Uttaradhyayanani Purvarddha
Author(s): Chirantanacharya, Kanchanvijay
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
उत्तरा० अवचूर्णिः
केशिगौतमीयमध्ययनम्
*
॥१९॥
तन्तुबन्धनो.
गौतम आह
तं लयं सवसो छित्ता, उद्धरित्ता समूलियं । विहरामि जहानायं, मुक्कोमि विसभक्खणं ॥ ८७७॥ तां लतां सर्वा छित्त्वा-खण्डीकृत्य, उद्धृत्य-उत्पाट्य समूलामेव-समूलिकां-रागद्वेषलक्षणमूलनिर्मूलनेन यथान्यायं विहरामि, तत्फलमाह-मुक्तोऽस्मि, सुब्ब्यत्ययात् विषभक्षणात्-विषफलाभ्यवहारोपमात् क्लिष्टकर्मणः ॥ ४६ ॥ ८७७॥
लया य इति का वुत्ता?, केसी गोयमः॥८७८ ॥ लता चेत्यादि स्पष्टम् ॥ ४७ ॥ ८७८॥
भवतण्हा लया वुत्ता, भीमा भीमफलोदया। तमुच्छित्तु जहानायं, विहरामि महामुणी ॥ ८७९॥ भवे-संसारे तृष्णा-लोभात्मिका भवतृष्णा लतोक्ता, भीमाः-भयदाः स्वरूपतः कार्यतश्च भीमो-दुःखहेतुतया फलानामर्थात् क्लिष्टकर्मणामुदयो-विपाको यस्याः सा भीमफलोदया तामुद्धृत्य ॥ ४८ ॥ ८७९ ॥
साहु गोयम! पन्ना ते॥ ८८०॥ ॥४९॥ ८८०॥ अग्निनिर्वापणं चैवेति षष्ठद्वारमङ्गीकृत्याह
संपज्जलिया घोरा, अग्गी चिट्ठइ गोयमा !। जे डहंति (जा डहेति पा०) सरीरत्था, कहं विज्झाविया तुमे ? ॥ ८८१॥
द्धरणे
XXXXXXXXXXXXX
XXXX*****
प्रशः ५
१९०॥
Jain Education International
For Privale & Personal use only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408