Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 164
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उपराज्ययन सूत्रम् १ ॥१२६६।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुप्राणिविनाशनघणां प्राणिओनुं घातकारक ॥ १८ ॥ मू० - जड़ मज्झकारणा एए। हन्नंते सुबहुजिया ॥ न मे एवं तु निस्सेयं । परलोए भविस्सइ ॥ १९ ॥ व्या० - तदा नेमिकुमारः किं चिंतयतीत्याह-यदि मम विवाहादिकारणेनैते सुबहवः प्रचुरा जीवा हनिष्यंते मारयिष्यते, तदैाख्यं कर्म परलोके परभवे निःश्रेयसं कल्याणकारि न भविष्यति परलोक भीरुत्वस्यात्यंतमभ्यस्ततयत्रमभिधानं, अन्यथा भगवतश्चरमदेहत्वादतिशयज्ञानत्वाच्च कुत एवंविधा चिंतेत भावः ॥ १९ ॥ अर्थ:-त्य नेमकुमार भुं विचा! ते कहे- जो मारा विवाहने कारणे आबहु-पुष्कळ जीवो हणायच्छे-मराय छे तो आ हिंसात्मक कर्म परलोकमा=परमवे निःश्रेयस= कल्याणकारक थशे नहि, अत्यंत अभ्यस्त होवाथी पोतानी परलोकधी भीरुता कही नाखी. अन्यथा भगवान्नो आबेल्लो देह होवाथी तथा अतिशय ज्ञान होवाथी आवा प्रकारनी चिंता होयज क्यांथी एवो भावाथे छे. ॥१॥ मू० - सो कुंडलाण जुभलं । सुत्तगं च महाजसो | आभरणाणि य सव्वाणि सारहिस्स पणामए ॥ २० ॥ व्यसनेमिक्कुमारो महायशाः, नेमिनाथस्याभिप्रायात् सर्वेषु जीवेषु बंधनेभ्यो मुक्तेषु सत्सु सर्वाण्याभर | णानि सारथये प्रणामयति ददाति कानि तान्याभरणानि १ कुंडलानां युगलं, पुनः सूत्रकं कटीदवरकं, चकारादाभरणशब्देन हारादीनि सर्वांगोपांगभूषणानि सारथेर्ददौ ॥ २० ॥ अर्थ --- महायशाः महोटा यशवाळा ते नेमिकुमारे-ज्यारे नेमिनाथनो अभिप्राय जाणी बधां प्राणियो बंधनथी छोडी मूक्यां त्यारे=कुंडळनुं युगल जोडी, सूत्रक-कंदोरो, 'च' शब्द उपरथी बीजां कडां बाजुबंध हार बगेरे सर्व अंग उपांगना आभारणी उतारीने For Private and Personal Use Only भाषांतर अच्य०१२ ।। १२६६ ।।

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