Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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बाम MERCH
अर्थ:-एक शत्रुने जीती लेां पांच शत्रुओ जीती लीधा के पांच अमोने जीती लेता दयशश्री जीती लीधा हे. इसे शत्रुओने जीती लइ हुं सर्व शत्रुभाने जीतुं बु.॥ ३६॥
हाभापांखर | व्या०--हे केशीमुने । एकस्मिन् शत्री जिते पंच शत्रवो जिताः, पंचसु जितेषु दश शत्रयो जिताः, दशैव अभ्य०१५ वैरिणो वशीकृता.. दशप्रकारान् शत्रून् जित्वा सर्वशत्रून् जयामि, यद्यपि चतुर्णा कषायणामबांतरभेदेन षोड- ॥१३२८॥ शसंख्या भवति, नोकषायाणां नवानां मीलनात् पंचविंशतिभेदा भति, तथापि महसूसंहा न भवति, परंतु तेषां दुर्जयत्वात् महसूसंख्या प्रोक्ता. ॥ ३६ ।। अथ केशी पृच्छति। अर्थः- श्रीकेशी साधु! एक शत्रुने जीती लेतां पांच शत्रुओ जीती लीधा छे. पांच शत्रुओने जीती लेतां दस शत्रुओ जीती। लीधा छे. दसे पण शत्रुओने वश कर्या छ. दस प्रकारना शत्रुओने जीती हुं सर्व शत्रुओने जीतुं छु. जो के चार कषायोना पेटा भेदथी, सोळनी संख्या थाय छे, अने तेमां नव नोकषाय भेळववाथी शत्रुओना पचीस प्रकार थाय छ, परंतु हजारनी संख्या थती नथी, तोपण तेओना दुर्जयपणाने लीधे हजारनी संख्या कही छे. ॥ ३६ ।। हवे श्रीकेशी साधु पूछे छे
मू-सत्त य के य ते वुत्ते । केसी गोयममब्बवी ॥ तओ केसी वुवंतं तु । गोयमो इणमब्बची। ३७ ॥ मू-गप्पा अजिह सत्त । कसाया इंदियाणि य॥ ते जिणित्तु जहा नायं । विहरामि अहं मुणी ॥ ३०॥
अर्थ:-श्रीकेशी साधुए श्रीगौतमने कयु के आधे केटला शत्रुभो कशा छ ? त्यार पछी ए प्रमाणे बोलता श्रीकेशी साधुने तो श्रीगौतमे भाk का एक अत्मा दुर्जय शत्रु के. कपयो अने इंद्रियो पण दुर्जय शत्रु दे. हे मुनि, न्याय प्रमाणे लेओने जीती हु बिणार करूंछु. ॥३७ ३८ ॥
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