Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 231
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kotbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कि | भाषांन Ram मांथी उत्पन्न थइ रही छे. अंतहृदय ए मन कहेवाय छे. आटलाथी मन विषे उत्पन्न थयेली. बळी जे वेल विषमक्ष्यो-फळो आवे छे. उत्तराय- विष जेवां भक्ष्यो ए विपभक्ष्यो-विषजेत्रां फळो उत्पन्न करे छे. जे लतानां परिणाममा दारुणपणाने लीधे विष जेवां फळो थाय छे. कारबाट ॥१३॥ म.-तं लय सम्वसो छित्ता । उद्धरित्ता समूलियं ।। विहरामि जहानायं । मुक्कोमि विसभक्खणा ।। ४६ ॥ से लताने सर्व रीते वेदी, तथा मूल सहित उखेडी नाली न्याय प्रमाणे विहार करूं छ; अने तेथी विष जेबा फळोनो आहार करवाथी मुक्त रह्यो छु. व्या०-गौतमो वदति हे मुने! तां लतां सर्वतः सर्वप्रकारेण छित्वा वंडीकृत्य, पुनः समूलिका मूलसहितामुध्धृत्योत्पाटय यथान्यायं साधुमार्ग विहरामि. ततोऽहं विषभक्षणाद्विषोपमफलाहारान्मुक्तोऽस्मि ॥१६॥ अर्थ:-श्रीगौतम कहेछ। हे मुनि ! ते लताना सर्वतः-सर्व रीते छित्त्वा-टुकडा करी, बळी समूलिकां-मूळसहित उद्धृत्य-उखेडी नाखी न्याय प्रमाणे-साधुना मार्गमा विहार करूं छु. तेथी हुँ विषभक्षणान-विप जेवां फळोनो आहार करवाथी मुक्त रह्यो छु.। मू०-लया इइ का वुत्ता । केसी गोयममध्वधी । तओ केसीवुवंतं तु । गोयमो इणमयी ॥४७॥ अर्थ:-श्रीकेशी साधुए श्रीगौतम ने कई के लता ए कोने कही छ ? त्यार पछी ए प्रमाणे बोलता श्रीकेशी साधुने तो श्रीगीत मे मा का'. ॥४७॥ व्य-हे गौतम ! लता इति का उत्ता? इति पृष्टे सति, इति ब्रुवंतं केशीमुनि गौतम इदमब्रवीत्. ॥४७॥ अर्थ-हे श्रीगौतम ! लता ए कोने कहीछे ? एम पूछवामां आवतां, एम कहेता श्रीकेशी मुनिने श्रीगौतमे आ कयु. ॥४७॥ | भू-भवतण्हा लया वुत्ता। भीमा भीमफलोदया । तमुद्धित्तु जहानायं । विहरामि महामुणी॥४८॥ हे महामुनि ! भयंकर अने भयंकर फलोना उदयवाळी संसार विषेनी तृष्णाने खता कहीले. ते तृष्णाने न्याय प्रमाणे उखेडी नाली हुं बिहार करुं .। For Private and Personal Use Only

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