Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 240
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उधराज्यपन पत्रम ॥१३४२ ॥ www.kobatirth.org गस्य गतिर्न विद्यते, पातालकलशवातैः क्षुभितस्य जलवेगस्य गमनं नास्ति, अपरत्र द्वीपे प्रलयकाले समुद्रजलक्ष्य गतिरस्ति परं तत्र द्वीपे नास्ति ॥ ६६ ॥ अर्थ: --- हे श्रीकेशी मुनि ! वारिमध्ये पाणीना मध्यमां जे 'महालओत्ति' उंचापणाथी अथवा विस्तीर्णपणाथी जेनुं आलयः स्थान. मोढुं छे एवो महालय :- विशाळ एक द्वीप छे बने बाजुओथी जेमां जळ छे ए द्वीप. तत्रः- ते द्वीपमां जलना मोटा प्रवाहनी गति नथी. पातालना समुद्रना पवनोथी क्षोभ पामेला जलना प्रवाहनी गति नथी. बीजा द्वीपमां प्रलयना समयमा समुद्रना जलनी गति छे, परंतु ते द्वीपमां नथी. ॥ ६६ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मू० - दीवे इइ के बुत्ते । केसी गोयममब्बवी ॥ तओ केसीं बुवतं तु । गोयमो इणमन्ववी ॥ ६७ ॥ अर्थः—श्रीकेशी माधुर श्रीगौतमने क' के 'द्वीपने' प कोने कछु छे ! त्यार पछी ए प्रमाणे बोलता श्रीकेशी साधुने तो श्रीगौतमे आ . ६० व्या-केशी गौतमं पृच्छति, हे गौतम! द्वीपमिति किमुक्तं ? इत्युक्तवनं केशीश्रमणप्रति गौतम इदमब्रवीत्. ६७ श्रीकेशी साधुए श्रीगौतमने पूछयूँ के हे गौतम! 'द्वीपने' ए कोने कछु छे ? एम बोलता श्रीकेशी साधुने श्रीगौतमे आ क. ६७ सू० -- जरामरणवेगेणं । बुडुमाणाण पाणिणं ॥ धम्मो दीवो पट्टा य गई। सरणमुत्तमं ॥ ६८ ॥ अर्थः-- वृद्धावस्था तथा मरणरुप जलना प्रवाहथी बतां प्राणीओने प्रतिष्ठा, गति अने श्रेष्ठ दारणरूप धर्म द्वीप छे. ॥ ६८ ॥ या०-हे केशीमुने ! जरामरणजलप्रवाहेण बुडतां तां प्राणिनां संसारसमुद्रे श्रुतधर्मश्चारित्रधर्मरूपो द्वीपो वर्तते, मुक्तिसुखहेतुर्धर्मोऽस्तीति भावः कीदृशः स धर्मः ? प्रतिष्ठा निश्चलं स्थानं पुनः कीदृशो धर्मः १ गति For Private and Personal Use Only भाषांतर अभ्य०१३ ||१३४२॥

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