Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 249
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir IX ॥१३५१० सिद्धि, लोकाग्र अने वळी शिव ए नामो के. आवां सार्थक नामोथी जे स्थान कहेनामा अवे छे. ते नामोनो अर्थ आ प्रमाणे छे:स्चराय निर्वान्ति-संतापना अभावी ठंडा थाय के जीवो यस्मिन्-जेमा ए निर्वाणम् , न विद्यते-नथी बाधा-पीडा यस्मिन्-जेमां MITHए अबाधम्-निर्मय, सिध्यन्ति-संसार विषे भ्रमणना अमावधी सिद्ध थाय छे सघळां कार्यों यस्याम्-जेमा ए मिद्धिः, लोक लास्य-लोकनी अग्रम्-अप्रभूमि (उपरनी भूमि) एजलोकाग्रम, क्षेमं-नित्य सुखने करनार होवाथी क्षेमम् , अने उपद्रवना अभा. बने लीधे शिवम्. वळी जे स्थान प्रत्ये महर्षिो काइ पण अडचण न आवे एवी रीते चरन्ति-जाय छे-जे स्थानने मुनिओ सुखेथी पामे छे. मुनिओ चक्रवर्ती राजाना करतां अधिक सुख भोगवनारा थह मोक्ष पामेछे ए आशय के. ॥ ८४॥ | मु०-साहु गोयम पन्ना ते । छिनो मे संसओ इमो ।। नमो ते संसयातीत । सव्वसुत्तमहोयही ।। ८ । *अर्थ:-हे भीगौतम! आपनी बुद्धि खारी के. मारो भा संशय घेदाइ गयो. हे संदेह महित! हे सर्व सिद्धांतोना समुद्र! मापने प्रणाम होजो. ८५ न्या-अथ केशीकुमारो मुनिौतम स्तौति, हे गौतम ते तव प्रज्ञा साध्वी वर्तते, मेममाय संशयश्छिन्नः, संदेहो दूरीकृतः हे संशयातीत! हे संदेहरहित ! हे मर्वसूत्रमहोदधे! सकलसिद्धांतसमुद्र! तुभ्यं नमो नमस्कारोऽस्तु. ८५ अर्थ:-पछी श्रीकेशीकुमार साधुए गौतमनी स्तुति करी के हे श्रीगौतम ! आपनी बुद्धि सारी छे, मारो आ संशय छेदी नाख्यो छसंदेह दूर कर्यो छे. हे संशयातीत-हे संदेहरहित. हे सर्वसूत्र महोदधे-सघळा सिद्धांतोना समुद्र ! आपने नमः-प्रणाम होजो. ा मू-एवं तु संसए छिन्ने । केशी घोरपरक्कमे । अभिवंदित्ता सिरसा । गोयमं तु महाजसं ॥ ८६ ।। मू-पंचमहव्वयं धम्मं । पडिवाइ भावओ । पुरिमस्स पछिमंमि । मग्गे तत्थ सुहावए ॥ ८७ ॥ युग्मं ॥ 9454 c+ कर For Private and Personal Use Only

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