Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 242
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपराव्य व्या:-हे केशीमुने! या नौः आश्राविणो छिद्रसहिनास्ति, आश्रवत्यागच्छति पानीयं यस्यां नानाविणी, सा ६ नो पारस्य गामिनी नास्ति, या निःप्राविणो निश्छिद्रा नौः, सातु पारस्य गामिनी. ७१ अथ केशी पृच्छति भाषांतर पवस्त्रमा अध्य०२३ Heavit अर्थ:-हे श्रीकेशी मुनि ! जे नौका आश्राविणी-छिद्रसहित होय, आवति-आवेरे पाणी जेवां ए आप्राविणी, ते है. ॥१३४४ नौका समुद्र नापारने पहोंचनारी थती नथी, परंतु जे नौका निःश्राविणी-छिद्र वगरनी होय ते तो समुद्रना पारने पहोंचनारी 12 थाय छे. ॥ ७१ ।। हवे केशी साधु पूल मु०-नावा इइ का बुत्ता । केमी गोयममन्ववी ॥ तओ केसी बुवंतं तु । गोयमोहनब्बी ॥ ७२ ।। अर्थ:---श्रीकेशी साधुए श्रीगौतमने कम' के नौका ए कोने कही है ? त्यार पठी ए प्रमाणे बोलता श्रीकेशी साधुने तो श्रीगौतमे आ का. ॥७२॥ व्या-नौः इति का उक्ता? इति केशी गौतम अब्रवीत् , ततः केशीमुनिप्रति गौतमोऽब्रवीत्. ।। ७२ ॥ अर्थः-'नौका' ए कोने कही छ ? एम श्रीकशी साधुए श्रीगौतमने का. त्यार पछी श्रीकेशी मुनिने श्रीगौतमे कयु. ७२ मू-सरीरमाहुनावित्ति । जीवो बुच्चड़ नाविओ॥ संसारो अन्नबो वुत्तो । जे तरंति महेसिणो ॥७३॥ अर्थ:-शरीरने ए नौका के एम कहे हे. जीवने नाविक को डे, संसारने सागर कह्यो छे, जेने महर्षिभो तरी जाय छे. ॥ ७३ ॥ व्या -हे केशीमुने ! शारीरं मौर्वर्तते, जीवो नाविको नोखेटक उच्यते. संसारोऽर्णवः समुद्र उक्तः, यं संसारसमुद्र महर्षयस्तरंति, एतावाता महर्षयः स्वजीवं तपोऽनुष्ठानक्रियावंतं नौवाहकं नाविकं कृत्वा चतुर्गतिभ्रमण रूपे भवार्णवे स्वशरीरं धर्माधारकत्वेन नावं कृत्वा पा प्राप्नुवंति, मोक्षं ब्रजंतीति भावः ॥ ७३ ॥ CAKCONS Katri ka For Private and Personal Use Only

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