Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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बनाम् ॥१३४७॥
SATURE
अर्थ:-श्रीकेशी साधुए श्रीगौतमने क्षु के सूर्य ए कोने कयो के ? स्थार पछी म प्रमाणे बोलता श्रीकेशी साधुने श्रीगौतमे भा क । ४ ॥ ___ व्या०—तदा केशीमुनिौतमं पृच्छति, हे गौतम! भानुरिति क उक्तः ! केशीमुनिगौतममित्यब्रवीत्. ततः
भाषांत | केशीमुनिमिति ब्रुवतं गौतम इदमब्रवीत्. ।। ७७ ।।
४।१३४ अर्थ:-त्यारे श्रीकेशी मुनि श्रीगौतमने पूछे छे के हे श्रीगौतम ! 'मर्य' ए कोने कह्यो छे? एम श्रीकेशी मुनिए श्रीगौतमने को. त्यारे पछी एम कहेता श्रीकेशी मुनिने श्रीगौतमे आ का ॥ ७७ ॥ मू-एगओ खीणसंसारो । सम्बन्नू जिणभक्खरो॥ सो करिस्सह उज्जोयं । सबलोगमि पाणीणं ।। ७८ ॥
अर्थ-क्षीण करेल ये संसार जेणे एत्रो सर्वज्ञ एक श्रीजिनरुप सूर्य थे. ते सर्व लोकमा प्राणीभोने प्रकाश भापशे ॥ ४ ॥
व्या-हे केशीमुने ! क्षीणः संसारो भवभ्रमणं यस्य स क्षोणसंमारः क्षयीकृनसमारः, सर्वज्ञः मर्वपदा-12 र्थवेत्ता, जिनो रागद्वेषयोर्बिजेता, स एको भास्करासूर्यः सर्वस्मिन् लोके चतुर्दशरज्ज्वात्मके लोके सर्वेषां प्राणिनामुषोतं करिष्यति, प्रकाशं करिष्यति. ॥ ७८॥ ___अर्थ:-हे श्रीकेशी मुनि श्रीण थल छे संसार एटले संसारमा भ्रषण जेनु एवो ते क्षीणमंसार:-क्षय करेल छे संसार जेणे एवो. सर्वज्ञः-सर्व पदार्थाने जाणनार. जिन:-रागद्वेषने जीतनार. ते एक भास्करः-सूर्य सघळा लोकमां-चौद रज्जुरुप लोकमा सर्व प्रणीओने उद्योत करशे-प्रकाश आपशे. ॥ ७८ ॥ | मू. साहु गोयम पन्ना ते । छिन्नो मे संसओ इमो ।। अनोवि संसओ मजझं । तं मे कहसु गोयमा ॥ ७९ ॥
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