Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 236
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माकेा दुष्ट योडाने ? श्रुतरस्मिसमाहितं-सिद्धांवरुप लगामथी गांधेला. तेथी ते मारो दुष्ट घोडो अबळे मार्गे जतो नथी, अने ते उचराध्य दुष्ट घोडो सीधो मार्ग प्रतिपद्यते-स्वीकारे छे. ॥५६॥ भाषांत पनखम मू-अस्से इइ के बुत्ते । केसी गोयममव्ववी ॥ तओ केसी वुवंतं तु गोयमो इणमब्ववी ।। ५७ ॥ अध्य०२७ ॥१३३८ का अर्थ:-श्रीकेशी साधुए श्रीगौतमने के घोटो ए कोने कझो छ ? त्यार पछी ए प्रमाणे बोलता श्रीकेशी साधुने श्रीगौतमे भा ॥ ५ ॥ १३५८॥ व्या-केशी पृच्छति, हे गौतम ! अश्व इति क उक्त तत इति ब्रुवंत केशीमुनि गौतम इदमब्रवीत्. ५७ श्री केशी साधु पूछे छे-हे श्रीगौतम ! 'घोडो' ए कोने कयो छे ? त्यार पछी ए प्रमाणे कहेता श्रीकेशी साधुने श्रीगौतमे आ कछु। मू-मणो माहसिओ भीमो । दुहस्सो परिधावई ॥ तं सम्म निगिहामि । धम्मसिक्खाय कंधगं ॥ ५८॥ अर्थ:--मनका साहसिक अने भयंकर दुष्ट घोडो चोमेर दोडे छे धर्मना अभ्यास माटे सारी जानना घोबानी पेठे तेने सारी रीते वश करुं बु. ५८ हे केशीमुने! मनो दुष्टाश्वः साहसिकः परिधावति, इतस्तत: परिभ्रमति तं मनोदुष्टाश्वं धर्मशिक्षायै धर्माभ्यासनि | मित्तं कंथकमिव जात्याश्वामिव निगृह्णामि वशीकरोमि, यथा जात्याश्वो वशीक्रियते, तथा मनोदुष्टा वशीकरोमि. | अर्थ:-हे श्रीकेशी मुनि ! मनरुप साहसिक दुष्ट घोडो परिधावति-आम तेम चोमेर दोडे छे. ते मनरुप दुष्ट घोडाने धर्म-18 शिक्षायै-धर्मना अभ्यास माटे सारी जातना घोडानी पेठे निगृह्णामि-वश करूं छु. जेम सारी जातनो घोडो वश करवामां आवे | छे, तेम मनरूप दृष्ट घोडाने वश करूं छु.॥ ५८॥ म.-माह गोयम पन्ना ते । छिन्नो मे संसओ इमो। अमोवि संसओ मजसं । तं मे कहसु गोयमा ॥५९ ॥ For Private and Personal Use Only

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