Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 232
________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ASS व्या०-हे केशीमुने! भवे संसारे तृष्णा लोभप्रकृतिलता वल्ल्युक्ता, कीरशी सा! भीमा भयदायिनी, पुनः उपराय-18 कीहशी? भीमफलोदया, भीमो दुःखकारणानां फलानां दुष्टकर्मणामुदयो विपाको यस्याः सा भीमफलोदया, दुः भाषांतर पनपत्रमा खदायककर्मफलहेतुभूता, लोभमूलानि पापानीत्युक्तत्वात्. तां तृष्णावल्लीं यथान्यायमुध्धृत्याहं विहारं करोमि. ४८ ॥१३३४| | अर्थ:-हे श्रीकेशी मुनि ! भवे-संसारमा तुष्णा-लोभप्रकृतिने लता-वेल कही छे. ते केवी छ ? भीमा-भय आपनारी के. १३३४॥ वळी ते केवी हे ? भीमफलोदया-दुःखना कारणभूत दुष्ट कमोनो भयंकर उदय-विपाक जेथी थाय छे एवी, अर्थात् दुःख आपनारां कमोनां फळोना कारणभूत; कारणके 'पापो लोभ छे मूळ जेओनुं एवा छे' एम कहेवामां अव्यु छे. ते तृष्णारूप वेलने न्याय प्रमाणे उखेडी नाखी हुँ विहार करूं छु.॥४८॥ म.-साहु गोयम पन्ना ते । छिनो मे संसओ इमो। अन्नोवि संसओ मज्झं । तंमे कहसु गोयमा ॥४९॥ ____ अर्थ:-( जुओ गाथा ३९मी प्रमाणे) व्या०- अर्थस्तु पूर्ववत् ॥ ४२ ॥ अर्थ:---आनो अर्थ तो पहेलांनी पेठे छे. ॥४९॥ मू-संपजलिया घोरा । अग्गी चिठ्ठह गोयमा ॥ जे डहति सरीरत्था । कहं विज्झाविया तुमे ॥ ५० ॥ हे श्रीगौतम ! अन्यत दीपता, तथा भयंकर अनिओ संसारमा रह्या के, जेओ शरीरमा रहेला जीवोने बाळे के आपे तेजओने केबी रीते दुसाध्या के ? व्या०-हे गौतम! संप्रज्वलिता जाज्वल्यमाना घोरा भीषणा अग्नयः संसारे तिष्टंति, येऽग्नयः शरीरस्थान अर्थात् प्राणिनो जीवान् दहति ज्वालयंति, तेऽग्नयस्त्वया कथं विध्यापिताः कथं शामिता इत्यर्थः ॥५०॥ ____ अर्थ:-हे श्रीगौतम ! संप्रज्वलिताः-अत्यंत दीपता, अने घोरा:-भयंकर अनिओ संसारमा रह्या के. जे अनिओ शरीरमां 81 PRESENCECRECOctors ESReseeBORICA For Private and Personal Use Only

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