Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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उपराष्यबन सूत्रम् ॥१३३०||
24-2-444
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करूं छु. तेओना मध्यम रहेतां छतां पण प्रतिबंध वगरना विहारथी विचरूं हूं. अर्हि पहेलां प्रश्नना समयमां 'अनेक हजारो शत्रुओना मध्यमां रहोछो' एम कछु, अने पछी तो कषयोना पेटामेदोथी सोळनी संख्या थाय छे, अने तेमां नव नोकषय मळवाथी पचीस भेदो थाय छे, तेम मन तथा इंद्रियोनी पण हजारनी संख्या थती नथी, तोपण आ शत्रुओनुं दुर्जयपणुं होवाने लोत्रे हजारनी संख्या कही छे ए अभिप्राय छे. ॥ ३७. ३८. ॥
मू" - साहु गोग्न पक्षा से । छिन्नो मे संसओ इमो || अन्नोषि संसओ मज्झं । तं मे कह सुगोपमा ॥ ३९ ॥ अर्थ :- हे गौतम! आपनी बुद्धि मारी मरो आ संशय छेदाइ भयोछे माशे बीजो पण संशय छे. हे गौतम! मने तेनो उत्तर कहो. ॥ ३९ ॥ व्या०-- अस्या अर्थः पूर्ववत् ॥ ३९ ॥ अर्थ:--- आनो अर्थ पहेलांनी पेठे छे. ।। ३९ ।।
मू० - दीसंति बहवे लोए । पासबद्धा सरीरिणो ॥ मुकपासो लहुप्भूओ । कहं तं विहरसी मुणी ॥ ४० ॥ अर्थ:---हे मुनि संसारमां मां प्राणीओ पाशवी बंधावेला जोवामां आवेछे, आप पाशयी मुक्त धट्ट हलका बनी फेम विहार करो हो ? ॥ ४० ॥ व्या० - पुनः केशी वदति, हे गौतममुने । लोके संसारे बहवः शरीरिणः पाशबद्धा हदयंते, स्वं मुक्तपाशः सन् लघुभूतो वायुरिव कथं विहरसि ? ॥ ४० ॥ अथ गौतमः प्राह
अर्थ:-- फरी श्रीकेशी साधु कहे छे के हे श्रीगौतम मुनि ! लोकमां पटले संसारमां घणां प्राणीओ पाशथी बंधाये लां जोवामां आत्रेछे, आप पाशथी मुक्त थर हलका बनीं वायुनी पेठे केम विहार करोछो १ ॥ ४० ॥ इव श्रीगौतम साधु कछेमू० - ते पासे मन्त्रो छिन्ता । निहंतूर्ण उवायओ | मुकपासो लहुरभूओ । विहरामि अहं मुणी ॥ ४१ ॥
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भाषांतर अच्य०२३ ||१३३०॥

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