Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 215
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उपराष्यघन सूत्रम् ॥१३१७॥] www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ :- हे गौतम! श्रीपार्श्वनाथ महामुनिए तीर्थकरे जे चातुर्याम-चार व्रतवाळो आ आपणे धर्म को छे, वळी श्रीवर्धमान स्वामी जे आ पंचशिक्षिक- पांच महाव्रतरूप धर्म दिष्टः--कह्यो छे, त्यां मोधने साधवारूप एक कार्यमा प्रवृत्त थयेला श्रीपार्श्व नाथ तथा श्री महावीरखामीना विशेषे मतभेदमां शुं कारण छे ? हे मेधावी ! वे प्रकारना धर्ममां आपने केम संशय थतो नथी १ कारण के ए बने पण तीर्थंकर थे, अने ए बने पण मोक्षरूप एक कार्य साधवामां प्रवृत्त थया है, तो ए बने नो मतभेद शा मटे होय १ ए हेतुथी आपना मनमां केम विप्रत्यय थतो नथी १-केम संदेह थतो नथी १ ।। २३, २४. ॥ 1 मूतओ केसिंबुवंतं तु । गोयमो इणमबच्ची ॥ पण्णा समित्रवर धम्मं । तत्तं तत्थ विणिच्छयं ॥ २५ ॥ अर्थ :- त्यार पछी ए प्रमाणे बोलता श्रीकेशीकुतरने को श्रीगीत आकछु बुद्धिजेनां तयोनो निश्चय के एवा धर्माचने-जाणे ॥२५॥ euro - ततोsनंतर केशीकुमारश्रमणं बुर्वतं कथयंत गोतम इदमब्रवीत् हे केशीकुमारश्रमण : प्रज्ञा बुद्धिर्धतवं धर्मस्य परमार्थं पदयति, धर्मतत्वं वुध्ध्यैव विलोक्यते, न तु चर्मचक्षुषा धर्मतत्वं विलोक्यते. सूक्ष्मं धर्म सुधीतीति वचनात् कीदृशं धर्मतत्वं ? तत्वविनिश्चयं तत्वानां जीवादीनां विशेषेण निश्चयो यस्तित्ववि rai, केवलं धर्मस्य श्रवणमात्रेण निश्चयो न भवति, किंतु प्रज्ञावशादेव धर्मतत्वस्य निश्चयः स्वादिति भावः. अर्थः- ततः त्यार पछी ते प्रमाणे सुबन्तं-बोलता श्रीकेशीकुमार साधुने श्रीगौतमे आ प्रमाणे कछु, हे श्रीकेशीकुमार साधु ! प्रज्ञा - बुद्धि धर्म तस्वने-धर्मना खरा अर्थने जुषे हे, धर्मं तत्त्व बुद्धिबीज जोवाय के, परंतु चर्मचक्षुथी धर्मनुं तच जोवामां आवतुं न थी, कारणके 'म धर्मने सारी बुद्धिवाळो जाणेछे' ए शाखनुं वचन . धर्मनुं तच केतुं ? तस्वविनिश्चयम् जीव वगेरे For Private and Personal Use Only भाषांतर अध्य०१३ १३१७॥

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