Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 218
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir LIAM I यादि पंच महावनानि प्राणातिपातविरतिमृषावादविरतिस्तेयविरतिमैथुनविरतिपरिग्रहविरतिरूपाणि पृथक पृथक | उचराध्य कथ्यंते, तदा ते ऋजुजडाः पंचमहाव्रतानि पालयंति नो चेत्त व्रतभंगं कुर्वति, ते तु यावन्मात्रमाचारं शृपयंति भाषांतर बन सत्रमा हैं| तावन्मात्रमेव कुर्वति, अधिकं खवुध्ध्या किमपि न विदंति. महावीरस्य साधवस्तु चेत्पंचमाहवतानि शृण्वंति ॥१३२०॥ अध्य०२३ तदैव पालयति. तेऽपि वक्रा जडाश्च चेन्चत्वारि व्रतानि शृण्वंति तदा चत्वार्थेव पालयंति, न तु पंचम पालयं नि. ॥१३२०॥ धावक्रजडा हि कदाग्रहग्रस्ता अतीवहभारिणः. द्वाविंशतितीर्थकृत्साधव ऋजवः प्राज्ञाश्च चत्वारि व्रतानि श्रुत्वा सुवुद्धित्यात् पंचापि व्रतानि पालयीत. तस्माश्चत्वारि व्रतानि मोक्तानि. तस्माद्धर्मो द्विविधः कृतः, चातुर्बतका पंचत्रतात्मकश्च. स्वस्ववारकपुरुषाणामभिप्राय विज्ञाय तीर्थकरधमे उपदिष्ट इति भावः ॥२९॥ अर्थः— 'पुरिमार्ग इनि-पहेला तीर्थकरना साधुश्रोनो कल्प एटले मुनिधर्मनो आचार दुर्विशोध्य-कष्टथी निर्म करी काय एवोके, श्री आदिनाथना साधुओ ऋजुजडा-जुजडपणाने लीधे कल्पनीय ज्ञानथी शून्य हता. वळी चरमाणाम् –ल्ला तीर्थ करना साधुओनो मुनिधर्मनो आचार दुरनुपालका कष्टथी पाळी शकाय छे प दुरनुपालक. महावीर तीर्थकरना साधुओ वक्रजड एटले वक्र (बांका) पणाने लीधे-घणा संशयवाळापणाने लीधे मुनिधर्मन! आचारने जागता छतां पण करवा अशक्त हता. तु-अने वचमा रहेला बाबीस तीर्थकर साधुओनो-श्रीअजितनाथथी आरंभी श्रीपार्श्वनाथ पर्यंतना तीर्थकर मुनिओनो कल्प-मुनिधर्मनो आचार लुनिशोध्यः सुपालकश्च-मुखेथी निर्मळकरी शकाय एको, अने वळी सुखेथी पाळी शकाय एवो छे. बावीस तीर्थकरना साधुओ। तो ऋजुप्राज्ञ एटले थोडं कह्याथी घणुं जाणनारा छे, तेथी तेओने चातुर्ऋतिक धर्मनो उपदेश कर्यो छ कारण मैथुनने परिग्रहमांजर For Private and Personal Use Only

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