Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 196
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काष्ठनां वे फाडचा कयाँ, त्यां सर्पने चळतो जोयो. श्रीभगवाने तेने पोताना सेवकना मुखथी पंच परमेष्ठी नमस्कारो अपान्या. सर्प उचराध्य- पण मरण पामी तेना प्रभावथी नागलोकमां धरणेंद्र नामनो नागराज थयो. 'अहो केवी ज्ञान शक्ति !' एम कहेता लोकोए श्रीभगा भाषांवर पनपत्रम् * वान्नो मोटो सत्कार को. त्यार पछी शरमाइ गयेला कमठ साधु गाढ अज्ञानतप करी मेघमारोना समूहना मध्यमा मेघमाली म.। ॥१२९८४ |नामना भवनवासी देव उत्पना. एक दिवसे श्रीभगवान् सुखेथी रहेता इता त्यां वसंतऋतुनो समय आव्यो. ते जणावचा माटे बगी-18॥१९॥ चाना रक्षके श्रीभगवान्ने आंचाना मोरनु अर्पण कर्य. श्रीभगवाने कद्दु रे ! आशं?' तेणे कबु 'हे भगवन् । घणा प्रकारनी क्रीडाना स्थानरुप आ वसंत समय प्राप्त थयो छे. त्यार पछी मित्रोनी प्रेरणाथी श्रीपार्श्वनाथ कुमार वसंतक्रीडा माटे घणा लोकोना | परिवारथी युक्त थड रथमां बेसी नंदन वनमां पधार्या. त्यां स्थपरथी उतरी ते नंदनवनना महेलना मध्यमा रहेला सुवर्णमय सिंहा| सनपर बेठा. अति रमणीय नंदनवननु चोमेस्थी निरीक्षण करता, महेलनी भीतपर आळेखेला परम रमणीय चित्रने जोइ ते बोल्या | "अहो ! अहिं शुं लख्यु के ? 'जाण्यु' एम कही सारी रीते अबलोकन करता श्रीभगवाने श्रीअरिष्टनेमिनुं चरित्र जोयु.॥८॥ ततः स चिंतितुं प्रवृत्तो धन्यः सोरिष्टनेमियों विरसावसानं विषयसुखमाकलय्य निर्भरानुरागां निरुपमरूपलावण्या जनकवितीणां राजकन्यां च त्यक्त्वा भग्नमदनमंडलपचारः कुमार एव निष्क्रांतः. ततोऽहमपि करोमि सर्वसंगपरित्याग. अत्रांतरे लोकांतिका वेवास्तत्रागत्य भगवंतं प्रतियोधयंतिस्म. त्रिंशवर्षाणि गृहस्थवासेऽसौ स्थितः, ततो मार्गणगणस्य यथोचित सांवत्सरिकवानं दत्वा भगवान् मातृपित्राचनुज्ञया महामहःपूर्वमाश्रमपदोद्यानेऽशोकपावपस्याधः पौषशुदैकादशीदिने पूर्वाह्नसमये पंचमौष्टिकं लोचं कृत्वा अपानकेनाष्टमभक्तेनैकं देव RAKSHAN For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254