Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 211
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्यपन पत्रम् ११३१३॥ अर्थ:- त्यां श्रीके शीकुमार सापुर श्रीगौतमने बेसवा माटे बीज वगार्नु चार प्रकारनु पगळ अने पांचमा दर्भतृणो तरत आया ॥१७॥ व्या-तत्र निंदुकोद्याने एव केशीकुमारश्रमणो गौतमस्य निषद्यायै गौतमस्योपवेशनार्थ प्रासुकं निजभाषांतर चतुर्विध पलालं, पंचमानि कुशतृणानि, चकारादन्यान्यपि माधुयोग्यानि तृणानि 'संपणामए' समर्पयति. पंचम- अध्य०२५ त्वं हि कुशतृणानां पलालभेदेन, चतुर्विधं पलाल यथा-तणपनगं पन्नत्त। जिणेहिं कम्मठुगंठिमहणेहिं ॥ साली १ वीही २ कोदव ३ । रालग ४ रन्ने तणा ५ पंच ॥१॥ इति वचनात्. चत्वारि पलालानि साधुप्रस्तरणयोग्यानि, पंचम हि दर्भादि प्रासुकं तृणं वर्तते. तत् केशीकुमारश्रमणेन गौतमस्य प्रस्तरणार्थ प्रदत्तमिति भावः ॥ १७ ॥ अर्थः-त्यां तिदुक बगीचामांज श्रीकेशी कुमार साधुप श्रीगौतमने निषद्यायै-धेसवा माटे मासुकं-बीज वगरनुं चार प्रका. रनु पराल, अने पांचमां दर्भतृणो चकारथी बीजां पण साधुने योग्य तृणो संपणामए-आप्या, पराकना चार प्रकारथी दर्भवणोनुं | पांचमापणु के पराळ चार प्रकारनुं छे. जेमके-तणपणगं पन्नत्तं । जिणेहिं कम्मठ्ठ गठि महणेहिं ।। साली १वीही २ कोच्व - सलग ५ रन्नेतणा ५ पंच। १॥ (आठे प्रकारनी कर्मग्रंथिओने भेदनाराजिनेश्वरोए शाळी, डांगर, कोदरा, रालक अने बनना तृण एम पांच प्रकारनां तृण कवांछे) ए वचनथी. चार प्रकारनां पराळ साधुना आसनने योग्य छ, अने पांच दर्भ वगेरे निर्जीव तृग पण आसनने योग्य छे. ते श्रीकेशीकुमार माधुए श्रीगौतमने आमन माटे आप्यु ए अभिप्राय छे. ॥१७॥ मू-केसीकुमारसमणो । गोयमे य महाजसे ।। उभओ निसन्ना सोहंति । चदसूरसमप्पभा ॥१८॥ अर्थ:-आसनपर बेठेला, महायशस्वी, अने चंद्र तथा सूर्य समान तिवाला श्रीफेशीकमार माधु तथा श्रीगौतम ने मोहंति (शोभता हता), १८ For Private and Personal Use Only

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