Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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पासुप सिजसंधारे ।।
अपर आवेला ही गरीना (नयरमंडले) पर
मूल-तिदुयं णाम उजाण । तम्मी नयरमंडले ॥ पासुए सिजसंधारे। तत्थ वासमुवागए ॥ ४ ॥ सचराध्यअर्थ:-(तम्मी) से श्रावस्ती नगरीना (नयरमंडले) पादरमा (तिदुयं) तिंदुक (गाम) नामनो (उजाणं) बगीचो हतो. (नस्य) तेमा (पासुए)
भाषांतर यम सत्रम् | जीवरहित प्रदेशनी अदर भावेला (सिज्जसथारे) उपाश्रय विषे संस्थारा उपर (वास) निवास (उवागए) कर्यो. ॥ ४ ॥
अध्य.२३ 1.१३०५ व्यास केशीकुमारश्रमणस्तत्र श्रावस्त्यां नगर्या, तस्याः श्रावस्त्या नगरमंडले पुरपरिसरे तिंदुकं नामो-12
११३०५॥ यानं वर्तते, तत्रोद्याने प्रामुके प्रदेशे जीवरहिते शरयासस्तारे वासमुपागतः शय्या वसतिस्तस्यां संस्तारः शिलादाफलकादिः शय्यासंस्तारस्तस्मिन् समवसून इत्यर्थः ॥४॥ * अर्थ:--ते के श्री कुमार साधुए ते श्रावस्ती नगरीमा तस्याः-श्रावस्तीना नगरमंडले-अहेरना पादरमा तिंदुक नामनो भगीचो
हतो, ते बगीचामा प्रासुके-जीवरहित प्रदेशनी अंदर भय्यासंस्तारमां निवास कर्यो. शय्या-उपाश्रय, ते विषे संस्तार:-शिला, पाटीआ वगेरे ए शय्यासंस्तारः. तेमा समवसरण कयू ए अर्थ थे।४॥
मु०-अह तेणेव कालेणं । धम्मतित्थयरे जिणे। भगवं वद्धमाणुत्ति । सब्बलोगमि विस्सुए ॥ ५॥
मेर-(मह) इवे (तेणेव) तेज (कालेग) समयमा (मतिरथरे) धर्मरूप तीर्थने प्रवर्तावनारा (जिणे) रागद्वेषने जीतनारा (भमर्च) भगवान् । (वडगाणुति) श्रीवर्धमान एका नामधी (सब्बलोगमि) सर्व लोकमां (विस्सुए) प्रसिद्धि पाम्या हता, ॥ ५॥ अपशब्दो वक्तव्यांतरोपन्यासे.तस्मिन्नेच काले धर्मतीर्थकरो जिनो भगवान् श्रीवर्धमान इति सर्वलोके विश्रुतोऽभूत. अथ शब्द बीजा कथनने कहेवा माटे छे. तेज समयमा धर्मतीर्थकर जिन भगवान् श्रीवर्धमान एवा नामथी सर्व लोकमां प्रख्यात हता. II
सस्कर
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