Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 199
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उचराध्ययन सूत्रम् १३०१ || www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir थतां कमठासुर श्रीभगवान्ना चरणोमां प्रणाम करी पोताने स्थाने गया. धरणेंद्र पण श्रीभगवान्ने पीडावगरना जाणी, तेनी स्तुति करी पोताने स्थाने गया. गृहस्थावासथी नीकळवाना दिवसथी चोराशीमे दिवसे चैत्र मासना कृष्णपक्षनी आठमे दिवसना आगला भागमा आसोपालवना झाडनी नीचे मोटी शिलापर अष्टम भक्तवडे सुखेथी बैठेला, अने शुभध्यानथी चारघाती कर्मों जेनां नष्ट थयां छे एवा श्री पार्श्वनाथस्वामीने सघळा लोकनो प्रकाश करनारूं केवलज्ञाना उत्पन्न थयुं. आसनो चलित थतां इंद्रोए त्यां आवी केवलज्ञाननो मोटो उत्सव कर्यो. सात फेणवाळा सर्पना चिह्नवाळा, डाबा अने जमणा पासामां वैरोच्या अने परणेंद्रथी सेवता, घडंलाना पुष्प जेवा वर्णथी युक्त शरीरवाळा, नव हाथ उंचा शरीरखाळा, अने चोवीस विशेषोथी युक्त श्रीपार्श्वनाथस्वामी संसारना जीवोने प्रतिबोध आपता पृथ्वीमंडळां विहार करता हता. ॥ १० ॥ पार्श्वगत दशगणधरा अभवन, आर्यदिन्नप्रमुखाः षोडशसहस्रमाधवोऽभवत् पुष्पचूलाप्रमुखा अष्टत्रिंशत्सहस्रार्थिका अभवन् सुव्रतप्रभुग्वाः श्रामणोपासका एकं लक्षं चतुःषष्टिसहस्राश्चाभवन् सुनंदाप्रमुखाः श्रमणोपासका लक्षत्रयं सप्तविंशतिसहस्राश्चाभवन्. सार्धत्रीणि शतानि चतुर्दशपूर्विणामभवन्. अवधिज्ञानिनां चतुर्दशशतानि, केवलज्ञानिनां दशशतानि चैक्रियलब्धिमतामेकादशशतानि, विपुलमतीनां सार्धश्रीणि शतानि, वादिनां षट्शतानि, अंतेवासिनां दशशतानि सिद्धिं गतानि. आर्यिकाणां विंशतिशतानि सिद्धानि, अनुत्तरोपपातिकानां द्वादशशतान्यभवन्. श्रीपार्श्वनाथस्यैषा परिवारसंपदभूत् ततः पार्श्वो भगवान् दशोचतुरशीतिदिनानि सप्ततिवर्षाणि केवलपर्यायेण विहृत्यैकं वर्षशतं सर्वायुः परिपाल्य सम्मेतशिखरे ऊर्ध्वस्थित एवाघः कृ For Private and Personal Use Only भाषांतर अध्य०२३ ॥१३०१ ॥

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