Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 173
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभ्य०१२ १२७५॥ उचराध्या दिधर्म मोक्षमार्ग चरिष्याव: पूर्व हि यदा भोगसुखं भुज्यते, ततश्च दीक्षा गृह्यते, तदा भुक्तभोगत्वेन पुनर्भोगसुयवसमाद खेषु मनो न स्यात्. तस्मात्पूर्वमधुना यथेच्छ भोगसुखं भोक्तव्यमिति भावः ॥ ३८ ॥ ॥१२७५|| | अर्थः-हे राजीमती ! मारी समीपे आव. आपण बन्ने विषयभोग करीए. हे प्रिये ! खलु-निश्चये मनुष्य-मानुष्य जन्म अति दुर्लभ छे. पछी आपणे भोगभोगवीने पाछा जिनमार्ग-जिनोक्त चारित्रधर्म आचर'. जो प्रथम भोग भोगवीने पछी दीक्षा ग्रहण कराय तो भोग भोगवी लीधा होवाथी फरी भोगनी इच्छा न थाय-मोगमुखमा मन न जाय-माटे पहेला तो हमणां आपणे यथेच्छ भोगसुख भोगवीये. . ३८ ॥ मू-दळूण रहनेमि तं । भग्गजोय पराइयं ॥ राइमई असंभंता । अप्पाणं संवरे तहिं ॥ ३९॥ __व्या-तदा राजीमत्यसंभ्रांता सती, निर्भया सती, तया ज्ञातमहं बलात्कारेणापि शीलं रक्षयिष्यामीति निश्चित्यानस्तासत्यात्मानं शरीरं वस्नः संवृणोत्याच्छादयति, गुहामध्यमेव स्थिता सतीति शेषः, किं कृत्वा ? रथनेमि भग्नयोगं दृष्ट्वा, भग्नो नष्टो योगः संयमोत्साहो यस्य स भग्नयोगस्तं पराजितं स्त्रीपरीषहेण पराभूतं रथनेमि ज्ञात्या. ॥ ३९ ॥ ____ अर्थः-त्यारे राजीमती जराय पण संभ्रम न पामतां निर्भय बनीने एटले तेणीना मनमा निश्चय थह गयो के. बलात्कारथी | पण हुं मारा शीळर्नु रक्षण करवा समर्थछु तेथी त्रास त्यजीने पोताना शरीरने वस्त्रो वडे, गुफामांज उमी उभी ढांकवालागी. केम करीने रथनेमिने भग्नयोग जोइने अर्थाद-जेनो योग-संयमोत्साह नष्ट थयोछे एटले स्त्रीपरीषहवडे पराभूत थयेला र नेमिने जाणीने. For Private and Personal Use Only

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