Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, Lakshmivallabh Gani
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 190
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie चराभ्यबनमवस १२९ | आव्या. दिवस अस्त पामतां ते त्यांज कायोत्सर्ग वडे रह्या. प्रभातमा त्यांची चाली ते जंगलमा पेठा. आतरफ महासर्प नरकजीव । भाषांतर पांचमी नरकभूमिथी नीकळी केटलाक संसारमा भ्रमण करी तेज ज्वलनगिरि पासे भयंकर जंगलमा वनमा फरनारो चांडाल थयो. अध्य०१३ मृगया माटे जतां तेणे प्रथम ते साधुने जोया. त्यार पछी तेणे पूर्वजन्मना वेरनेलीधे 'आ अपशकुन छे' एम मानी ते साधुने बाणथी १२९१॥ बींध्या. तेथी भववेदना टळी जवान ली। विधि प्रमाणे मरण पामी ते वज्रनाभ मुनि मध्यप्रैवेयकमां ललितांग नामना देव थया. ते पण जंगलमा फरनारो चांडाल ते मरण पामेला महामुनिने जोइ 'अहो ! हुँ मोटो धनुर्धारी हुँ' एम मानतां कूर कमने अत्यंत बांधी समय अव्ये मरण पामी सातमी नरकभूमिमां नरकना जीवरूपे उत्पन्न थयो. ॥ ४ ॥ | वज्रनाभदेवस्ततश्च्युत इहैव जंबूद्वीपे पूर्व विदेहे पुराणपुरे कुशलबाहुराज्ञःसुदर्शनादेव्याः कनकप्रभो नाम पुत्रो जातः, स च क्रमेण चक्रवर्ती जाता. अन्यदा प्रामादोपरि संस्थितेन तेनाकाशे निर्गच्छन् देवसंघातो दृष्टः, नदर्शनादेव विज्ञातजगन्नाथतीर्थकरागमः स्वयं निर्गतस्तद्वंदनार्थ. वंदित्वा च तत्रोपविष्टस्य तस्य पुरतो भगवता देशना कृता. तां च श्रुत्वा हृष्टश्चक्रवर्ती बंदित्वा स्वनगयाँ प्रविष्टः, अन्यदा म कनकप्रभनामा चक्रवर्ती तां | तीर्थकरदेशनां भावयन् जातजातिस्मरणः पूर्वभवान् दृष्ट्वा भवविरक्तचित्तः प्रत्रजितः. इतश्च स क्रमेण विहरन् क्षीरवनाटव्यां क्षीरपर्वते सूर्याभिमुखं कायोत्सर्गेण स्थिता ॥ ५॥ अर्थः-वज नाम देव मध्य प्रैवेयकथी च्यवी अहिंन जंघद्वीपमा पूर्व विदेह विषे पुराणपुर नामना अहेरमा कुशल बाहु नामना | राजानी सुदर्शना नामनी राणीने पेटे कनकप्रम नामनो पुत्र थयो, अने ते क्रमेकरी चक्रवर्ती राजा थयो. एक दिवसे महेलनी अगाशी KEEKCXSAR For Private and Personal Use Only

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