Book Title: Updeshpad Granth Part 02
Author(s): Rajshekharsuri
Publisher: Arihant Aradhak Trust

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Page 451
________________ ४४४ 64हेशप : भाग-२ भूसिय जंपाणगओ, इड्डीए णीणिओ विभागण्णू । भोगम्मी जायछणे, मयरुवणदरिद्दग भणीसु ॥९५६॥ लाभगचेयग भोगी, जाए उ छणो सुवाहितुल्लो त्ति । मरणे दुक्खमवेक्खा, किमिह दरिद्दोवे परलोए ॥९५७॥ रायणिवेयण दंसण, तोसो पियवयण पुच्छ पसिणत्थे । णमणमणुण्णा संवेगसाहणं भावसारमिमं ॥९५८॥ धम्मकरणेण भोगी, लाभा इहरा उ तुच्छभोगोत्ति । रज्जफलोत्ति सुवाही, तच्छणसरिसो उ एएसु ॥९५९॥ मालालुगप्पभोगाइणायओ दुक्खकारणमविक्खा । धम्मी दरिद्दगो इह, अओण्णहण्णोवि परलोए ॥९६०॥ मायापिउणा भणिओ, इह धम्मण्णू तुमं तहावम्हं । ठिइयत्तेहिं इह, दुःखं कुणसित्ति सो आह ॥९६१॥ गंतव्वं सगईए, गुरुयणसंवुड्डिकारयं गच्छे । आसासमाइदीवगजोगम्मि ण अण्णहा जुत्तं ॥९६२॥ बोल्लेमि य जं उचियं, इहरा उ ण जुत्तमेव वोत्तुं जे । जं इह एस कुहाडी, जीहा धम्मेयरतरूणं ॥९६३॥ एवं ति तेसिं बोहो, धम्मपरिच्छाए पायसो णवरं ।। माइपिइपूयघायाणमित्थ किं जुत्तमच्चत्थं ॥१६४॥ पूजत्ति आहु पायं, अण्णेऽणेगंतवायओ तत्तं । ववहारणिच्छएहिं, दुविहा एए जओ णेया ॥९६५॥ ववहारओ पसिद्धा, तिण्हा माणोक णिच्छएणेए । आइमगाणं पूया, इयरेसिं वहोत्ति ता जुत्तं ॥९६६॥ बझेयरचिट्ठाणं, अण्णे का सोहणत्ति आहेसो । अण्णयरावोहेणं उभयं भेयाओ एयस्स ॥९६७॥

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