Book Title: Tulsi Prajna 2006 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 10
________________ • बताना संभव नहीं है कि वह वस्तुतः कितनी लम्बी है, क्योंकि समय और स्थान के अनुसार वह लम्बाई घटती और बढ़ती रहती है । सापेक्षता का यह अर्थ करना कि एक रेखा अपने से लम्बी रेखा की अपेक्षा छोटी है और अपने से छोटी रेखा की अपेक्षा लम्बी है- बहुत सामान्य सी बात है। डॉ. नथमल टांटिया का कहना है - यह तो "सिद्ध साधन" है अर्थात् जो बात पहले से ही स्पष्ट है, हम उसे तर्कों द्वारा सिद्ध करने का प्रयत्न कर रहे हैं। - आईन्सटीन के सापेक्षता सिद्धान्त ने जो तथ्य उद्घाटित किया वह सर्वथा नवीन है, अतः उसे थोड़ा विस्तार से समझना होगा। आईन्सटीन ने हमारे सामने तीन सिद्धान्त रखे 1. कोई भी पदार्थ जैसे-जैसे अपनी गति तेज करता है उसका माप छोटा होता चला जाता है - यहां तक कि यदि वह प्रकाश की प्रति सेकेण्ड 1,86,000 मील वाली गति से चले तो उसका माप शून्य हो जाता है और वह दिखना बंद हो जाता है। 2. जैसे-जैसे पदार्थ की गति तेज होती है उसका द्रव्यमान बढ़ता जाता है यहां तक प्रकाश की गति पर उसका द्रव्यमान अनन्त हो जाता है। 3. जैसे-जैसे गति तीव्र होती है, समय की गति मंद होती है और प्रकाश की गति पर समय की गति सर्वथा रुक जाती है । उपर्युक्त तीनों मान्यताएं उस दर्शक की दृष्टि से कही गयी है जो स्वयं स्थिर है और जिसकी अपेक्षा पदार्थ गति करता है किन्तु यदि दर्शक स्वयं भी पदार्थ के साथ गति करता हो तो उसके लिए समय, माप अथवा द्रव्यमान घटते-बढ़ते नहीं हैं, अपितु उतने ही रहते हैं। दूसरी बात ध्यान में देने की यह है कि उपर्युक्त मान्यताएं स्थूल स्तर पर दृष्टिगोचर नहीं होती। इन तथ्यों का प्रत्यक्षीकरण वहीं होता है जहां पदार्थ प्रकाश की गति से थोड़ी बहुत ही कम तीव्र गति से चल रहे हों। प्रकाश की गति की निरपेक्षता आईन्सटीन के सामने दो ऐसे तथ्य थे जिसके कारण वे उपर्युक्त तथ्यों तक सापेक्षतावाद सिद्धान्त के आधार पर पहुंच सके 1. यह स्पष्ट नहीं हो रहा है कि यह कहने का क्या अर्थ है कि अमुक पदार्थ चलता है और अमुक पदार्थ नहीं चलता है । चलते हुए जहाज में यदि एक व्यक्ति दूसरे कुर्सी पर बैठे व्यक्ति के पास चलकर जा रहा हो तो कुर्सी पर बैठे व्यक्ति के लिए वह व्यक्ति चल रहा है और वह स्वयं कुर्सी में बैठा हुआ स्थिर है किन्तु जहाज से बाहर खड़े हुए व्यक्ति के लिए दोनों ही चल रहे हैं । 1 तुलसी प्रज्ञा जुलाई - दिसम्बर, 2006 Jain Education International For Private & Personal Use Only 5 www.jainelibrary.org

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