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काल की सापेक्षता
आईन्स्टीन ने एक प्रयोग मानसिक रूप से किया। कल्पना करें कि एक कमरा शीशे का बना हुआ है जिसके ठीक बीचो-बीच बिजली का लटु लगा है और वह कमरा चल रहा है। एक व्यक्ति उस कमरे के बाहर है। बिजली का लटु रुक-रुक कर जलता है। जब वह जलता है तो कमरे के भीतर वाले व्यक्ति को वह प्रकाश कमरे की चारों दीवारों तक एक साथ पहुंचाता हुआ दिखाई देता है। अब यदि वह कमरा प्रकाश जैसी तीव्र गति से चलने लगे तो बाहर वाले व्यक्ति को गति की विपरीत दिशा में बनी हुई अर्थात् पिछली दीवार पर प्रकाश पहले पहुंचाता हुआ दिखाई देगा और गति की दिशा में बनी हुई अर्थात् अगली दीवार पर वह प्रकाश बाद में पहुंचाता हुआ दिखाई देगा। जो एक के लिए पूर्वापर है-वह दूसरे के लिए युगपत् है। इसका यह अर्थ हुआ कि विश्व में निरपेक्ष रूप में पहले. पीछे और एक साथ होने का कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि ये सब दर्शक-सापेक्ष हैं।
आईन्स्टीन ने इस आधार पर एक नया सिद्धान्त बनाया कि देश और काल पृथक्पृथक् नहीं है अपितु दोनों मिलकर एक चतुःआयामी तत्व है। न्यूटन यह मान रहा था कि देश में लम्बाई-चौड़ाई और मोटाई ये तीन आयाम हैं- जो हर स्थूल पदार्थ में रहते हैं और एक समय का चौथा आयाम है जिसमें ये तीन आयाम वाले पदार्थ परिणत होते रहते हैं। न्यूटन के अनुसार समय गति करता है-अतीत से वर्तमान में होता हुआ भविष्य में जाता है। आईन्स्टीन के अनुसार देश काल मिलकर एक तत्व है-जो स्थैतिक (Static) है। इस स्थैतिक देशकाल के पटल पर कुछ नया घटित नहीं होता अपितु सब कुछ पहले से ही चित्रलिखित है। जब हम उसे देखते हैं तो वह केवल अभिव्यक्त होता है।
चतुःआयामी देश काल एक गणितीय स्थापना है। बोलचाल की भाषा में उसे कहने के लिए हम चतु:आयाम शब्द का प्रयोग करते हैं। पाइथागोरस प्रमेय (P-Theorerm) के अनुसार समकोण त्रिकोण की दो भुजाओं के वर्ग का योग कर्ण के वर्ग के बराबर होता है। उदाहरणातः यदि एक समकोण त्रिकोण की एक भुजा 3 इंच और दूसरी भुजा 4 इंच है तो तीसरी भुजा 9+16=25=5 इंच होगी। इसके समानान्तर देश और काल को देश-काल भले कुछ भी हो किन्तु देश-काल और उन देश और काल के बीच अनुपात एक ही रहता है जैसे समकोण त्रिकोण के दो भुजाओं की लम्बाई कुछ भी क्यों न हो किन्तु कर्ण की लम्बाई का उस लम्बाई के साथ अनुपातिक संबंध वही होता है। आईन्स्टीन के गणित के गुरु Minpwshi ने यह निष्कर्ष निकाला कि किसी भी व्यक्ति के अतीत और भविष्य अब और यहीं (Now and here) मिलते हैं।
। तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 2006 C
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