________________
निश्चय-व्यवहार
स्थूल स्तर पर व्यहार नय कार्य करता है, सूक्ष्म स्तर पर निश्चय नय। दोनों को जोड़कर ही पूरा सत्य बन पाता है। विज्ञान के क्षेत्र में भौतिक स्तर पर हम सापेक्षता को समझते हैं किन्तु आध्यात्मिक क्षेत्र में अनेकान्त का अर्थ है-वीतरागता।
सूक्ष्म को जानने का उपाय है-प्रेक्षा। देखते हम सब हैं किन्तु देखने के साथ अपने पूर्वाग्रहों को जोड़े रखते हैं। ये पूर्वाग्रह राग-द्वेष जनित है। प्रेक्षा का अर्थ है पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर देखना।
पूर्वाग्रह केवल धर्म दर्शन के क्षेत्र में बाधक नहीं है, विज्ञान के क्षेत्र में भी बाधक है। देश काल के प्रति हमारा एक पूर्वाग्रह था कि वे बदलते नहीं है। प्रकाश की गति से उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान देश काल की इन अवधारणाओं के साथ संभव नहीं था। आईन्स्टीन ने अपने आपकों इन पूर्वाग्रहों से मुक्त किया तो विज्ञान के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा सिद्धांत विकसित हो सका। बहुत बार जिन सत्यों को हम स्वतः सिद्ध मान लेते हैं वे वस्तुतः हमारे पूर्वाग्रह होते हैं। विज्ञान की सारी प्रगति इस आधार पर होती है कि पुरानी धारणाएं खण्डित हो जाती हैं और नयी स्थापित हो जाती हैं। यदि हम पुरानी धारणा छोड़ने के लिए तैयार नहीं तो नई धारणा प्रतिष्ठित ही नहीं हो सकती और इस प्रकार विकास अवरुद्ध हो जाता है।
विज्ञान के क्षेत्र में तो पुरानी अवधारणाओं को छोडना कई बार इतना कठिन नहीं भी होता किन्तु धर्म दर्शन के क्षेत्र में हमारी धारणाएं भावनाओं से मिली होती हैं और उन्हें छोड़ने के लिए अपना अतिक्रमण करना होता है, यही सच्चा रूपान्तरण है। पूर्णता-अपूर्णता
सापेक्षता का एक आयाम है पूर्णता और अपूर्णता का सह-अस्तित्व। परमार्थतः हम पूर्ण हैं अर्थात् अपने शुद्ध रूप में हम पूर्ण हैं। किन्तु हमारे व्यावहारिक रूप में अपूर्णता रहती है। व्यवहार का आधार है विचार और भाषा। जैसे ही हम सत्य को विचार और भाषा में बांधना चाहते हैं वैसे ही वह सत्य खण्डित हो जाता है। यदि इस बात को समझ लें कि हम जो सोच रहे हैं या कह रहे हैं-वह सत्य का एक अंश हो सकता है, पूर्ण सत्य नहीं तो हमारा दुराग्रह समाप्त हो जायेगा । खण्डित सत्य का अर्थ है सापेक्ष सत्य। जब हम निरपेक्षता पर जाते हैं तो भाषा अवरुद्ध हो जाती है। वहां न भाषा पहुंचती हैं, न बुद्धि, न तर्क । विचार का अपना महत्त्व है-वह सापेक्ष सत्य को जानता है। निर्विचारता का अपना महत्त्व है-वहां निरपेक्ष सत्य प्रकट होता है। जहां सापेक्षता होगी वहां पक्ष-प्रतिपक्ष दोनों रहेंगे, जिसे हम मुख्य मान लेंगेवह पक्ष हो जायेगा, जिसे हम गौण मान लेंगे वह प्रतिपक्ष हो जायेगा।
16
-
- तुलसी प्रज्ञा अंक 132-133
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org