________________
वाला रसायन है । विशुद्ध भावों से अहिंसा और अहिंसा पालन से कर्मक्षयरूप मुक्ति, यही जिनमार्ग है । यथा
अमृतत्वहेतुभूतं परममहिंसारसायनं लब्ध्वा ।
अवलोक्य वालिशानामसमंजसमाकुलैर्न भवितव्यं ॥ 78 ॥
सभी व्रतों का रक्षासूत्र अहिंसा
आचार्य अमृतचन्द्रसूरि ने इस पुरुषार्थसिद्धयुपाय ग्रन्थ में अहिंसा को बहुत अधिक व्यापक बनाया है। उन्होंने कहा है कि प्रमादयोग से ही व्यक्ति अनेक प्रकार से झूठ बोलता है, कषाययुक्त भावों से ही व्यक्ति दूसरे के धन को हड़पने की चेष्टाएं करता है, रागयुक्त भावनाओं से मैथुन आदि में लिप्त होता है, मूर्च्छाभाव से परिग्रह एकत्र किया जाता है, ये सभी प्रमाद और कषाय भावहिंसा के कारण हैं। अत: झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रहवृत्ति आदि में हिंसा सम्मिलित है। इस प्रकार की हिंसा से बचने के लिए ही सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह व्रतों का पालन किया जाता है । अतः ये व्रत अहिंसा के रक्षासूत्र हैं । इन्हीं रक्षासूत्रों में रात्रि भोजन त्याग व्रत भी है। अहिंसक होने के लिए रात्रिभोजन त्यागी होना आवश्यक है। इसके लिए आचार्यश्री ने सूक्ष्मता से इस पर विचार किया है और अपना अंतिम निर्णय दिया है कि मन-वचन-काय से जो रात्रिभोजन का त्याग करता है वही निरन्तर अहिंसाव्रत को पालता है । यथा
किंवा बहुप्रलपितैरिति सिद्धं यो मनोवचनकायैः । परिहरित रात्रिभुक्ति सततमहिंसां स पालयति ॥ 134 ॥
सात शीलव्रत- तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत भी अहिंसा की साधना में सहायक हैं। अनर्थदण्डव्रत का विधान जैन-दर्शन का विशेष अवदान कहा जा सकता है। समाज में अधिकांश कार्य निष्प्रयोजन होते हैं, जिनको करने से आत्मा के विकास या शुद्ध भावों की वृद्धि में कोई सहयोग नहीं मिलता, अपितु राग-द्वेष की प्रवृत्ति बढ़ती है जो हिंसा को बढ़ाने वाली है । अत: ऐसे व्यर्थ के कार्यों को अहिंसक व्यक्ति को नहीं करना चाहिए । प्रत्येक कार्य को सावधानी पूर्वक करने एवं प्रत्येक वस्तु को देख - शोधकर उपयोग में लाने का विधान गृहस्थ के लिए मात्र धार्मिक उपदेश ही नहीं है, अपितु व्यावहारिक दृष्टि से सुसभ्य नागरिक बनाने का सूत्र है।
28
निष्प्रयोजन हिंसा दुखदायी
बहुत से पुरुष प्रमाद में बैठे-बैठे सुस्ती में आकर वृक्षों को उनकी डालियों को उखाड़ देते हैं, पृथ्वी को खोदते रहते हैं, बगीचे में बैठे हैं, वहां की घास ही तोड़ रहे हैं, किसी नदी
तुलसी प्रज्ञा अंक 132-133
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org