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3. तीर्थंकरसिद्ध- ऋषभ आदि जो तीर्थंकरनामकर्म के कारण तीर्थस्थापना एवं भव्यजनों का उपकार करते हुए तीर्थंकर अवस्था में मुक्त होते हैं वे तीर्थंकरसिद्ध हैं। सिद्धसेनगणि ने तीर्थंकरसिद्धों को प्रत्येकबुद्धबोधित' अनुयोगद्वार के प्रथमविकल्प में परिगणित किया है।
4. अतीर्थंकरसिद्ध- गौतम आदि सामान्य केवली जो तीर्थस्थापना में प्रवृत्त नहीं होते, अतीर्थंकरसिद्ध कहलाते हैं। तीर्थंकर के अतिरिक्त प्रत्येक बुद्ध, परबोधक एवं स्वेष्टकारीतीनों ही विकल्प अतीर्थंकर हैं।"
____5. स्वयंबुद्धसिद्ध- जो स्वयं तत्त्व को जानता है, बोधि के लिए दूसरे के प्रतिबोध की अपेक्षा नहीं रखता, वह स्वयंबुद्ध कहलाता है। स्वयंबुद्ध के दो प्रकार हैं- तीर्थंकर
और तीर्थंकर व्यतिरिक्त। तीर्थंकरसिद्ध का वर्णन तीसरे प्रकार में किया जा चुका है। यहां तद्व्यतिरिक्त स्वयंबुद्धों का ही ग्रहण करना चाहिए। नन्दीचूर्णि के अनुसार स्वयंबुद्ध के दो अर्थ हो सकते हैं
(क) जातिस्मरण आदि के द्वारा बोधि प्राप्त करने वाले। (ख) बाह्य निमित्त के बिना बोधि प्राप्त करने वाले।
6. प्रत्येक बुद्धसिद्ध- किसी एक बाह्य निमित्त के आलम्बन से स्वयं बोधि प्राप्त कर मुक्त होने वाले प्रत्येक बुद्ध सिद्ध कहलाते हैं। सिद्धसेन गणि ने इसके उदाहरण रूप में करकण्डू को प्रस्तुत किया है। उत्तराध्ययन सूत्र में चार प्रत्येक बुद्धों का वर्णन मिलता हैकरकण्डू, द्विमुख, नाभि और नग्गति।"
7. बुद्धबोधितसिद्ध- बुद्धबोधित के चार अर्थ किए जा सकते हैं(क) बुद्ध (तीर्थंकरों आदि स्वयं बुद्धों) से बोधि प्राप्त । (ख) बुद्ध (कपिल आदि प्रत्येक बुद्धों) से बोधि प्राप्त । (ग) बुद्धबोधित (सुधर्मा आदि) से बोधि प्राप्त । (घ) प्रतिबुद्ध (प्रभव आदि) से बोधि प्राप्त।"
हरिभद्र एवं मलयागिरी ने बुद्धबोधित का अर्थ आचार्य द्वारा बोधि प्राप्त किया है।18 सिद्धसेन गणि ने बुद्ध बोधित के दो अर्थ किए हैं-- परबोधक तथा स्वेष्टकारी।"
8. जो स्त्री की शरीर रचना में- स्त्रीरूप में सिद्ध होता है वह स्त्रीलिंगसिद्ध कहलाता है। लिंग शब्द के तीन अर्थ होते हैं- (क) वेद-कामविकार (ख) शरीर रचना (ग) नेपथ्य-वेशभूषा।
तुलसी प्रज्ञा जुलाई --दिसम्बर, 2006
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