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program. You can learn to use the untapped power of your mind to accomplish whatever you desire'16 (इस पंक्ति में यह व्यक्त किया गया है कि आप अपनी मनोकामना पूर्ण करने की सामर्थ्य आपके स्वयं की मन की शक्ति से पाने की विधि सीख सकते हैं। इस विधि को सिल्वा-विधि कहा जाता है।)
सिल्वा (Silva) द्वारा प्रचारित एवं प्रसारित विधि की सफलता इस बात से आंकी जा सकती है कि अब तक सैकड़ों बड़ी-बड़ी कम्पनियों के हजारों एक्जीक्यूटिव इस विधि को सीख चुके हैं। कई हजार रूपयों की फीस एक व्यक्ति को इस विधि को सीखने हेतु देनी होती है। कई पुस्तकों” में बड़ी-बड़ी कम्पनियों के एक्जीक्युटिव द्वारा प्राप्त सफलता की कहानियां पढ़ने को मिल सकती हैं। इनमें से कई कहानियाँ चमत्कार से कम नहीं लगती है।
दीपक चौपड़ा, जिनकी प्रसिद्ध पुस्तक "The seven spiritual laws of success" के पहले अध्याय में यह बताते हैं कि आप अपने-आपको मकान, धन, शरीर आदि न मानते हुए केवल शुद्ध चेतना (Pure consciousness) मानो और ऐसा अनुभव करो । जिस समय ऐसे स्वयं को अनुभव करते हो उस अवस्था को वे "Self referral" अवस्था कहते हैं। दीपक चौपड़ा कहते हैं कि "Self referral" शान्त अवस्था में आने के उपरान्त जब वापस बाहर निकलते हो तब आपके मन की गहराई में जो भी इच्छा होती है, उसकी पूर्ति होती है। उनकी निम्नांकित पंक्ति भी इस सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण है :
"Anything you want can be acquired through detachment, because detachment is based on the unquestionning belief in the power of you ture
self."18
उदयपुर में वर्षायोग 2006 में विराजमान मुनि श्री 108 सुधासागरजी का 15 सितम्बर, 2006 का प्रवचन मुझे याद आता है जिसमें मुनिश्री मन्दिर के एक भक्त की नि:सही अवस्था की व्याख्या करते हुए बताते हैं कि मन्दिर में एक सच्चा भक्त संसार के सभी पदार्थों एवं घटनाओं से संग छोड़ देता है और यह अवस्था ऐसी है जहां चमत्कार होते हैं जैसे कि धनंजय कवि के पुत्र का विषापहार । गहराई से देखा जाये तो वीतरागी देव की आराधना से निःसही या नि:संगी होने के भाव ज्यादा सरलता से पैदा हो सकते हैं।
पश्चिम जगत के आधुनिक प्रयोगों से भी यह ज्ञात होता है कि मनोकामनाएं नि:संगी अवस्था में या अल्फा अवस्था में आने से पूर्ण होने की संभावना ज्यादा होती है। इन तथ्यों को मिला कर देखें तो हम यह पायेंगे कि वीतरागी देव चाहे वे कुछ भी उनके पास से हमें न दें किन्तु आटोमैटिक व्यवस्था से सहज ही में सच्चे भक्त के मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।
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- तुलसी प्रज्ञा अंक 132-133
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