Book Title: Tulsi Prajna 2006 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 61
________________ तीर्थंकरों की मूर्तियों पर उकेरित चिह्न डॉ. उमाकान्त पी. शाह अनुवादक, प्रोफेसर लक्ष्मीचन्द जैन विभिन्न तीर्थंकरों की मूर्तियाँ उनकी पादपीठ के नीचे उकेरित किये गये लांछन या चिह्न की सहायता से पहिचानी जाती हैं। दिगम्बर एवं श्वेताम्बर, दोनों सम्प्रदायों द्वारा ऐसे लाक्षणिक प्रतीकों की सूची दी गयी है। तिसपर भी, किसी भी पूर्व के ग्रन्थों में ये नहीं पाये गये हैं। इन लांछनों की सूची न तो किन्हीं आगमों (Canonical texts) में, कल्पसूत्र में मिलती है जिसमें चौबीस जिनों का जीवन वृत्तान्त दिया है, न नियुक्तियों में और न ही चूर्णियों में दी गई है। केवल आवश्यक नियुक्ति के एक स्थान पर इस तथ्य का निर्देश दिया गया है कि ऋषभ नाम इसलिये रखा गया, क्योंकि उनके उरुओं (thighs) में ऋषभ (bull) का चिह्न (sign) था।' परन्तु उसमें अन्य जिनों के कोई भी लांछन नहीं दिये गये हैं और यह नियुक्ति, जो आज उपलब्ध है, दूसरी या तीसरी सदी (Century A.D.) के पूर्व की मान्य नहीं है। लगभग पांचवी सदी का ग्रन्थ 'वासुदेवहिण्डी', जिसमें अनेक तीर्थंकरों (उदाहरणार्थ, ऋषभनाथ, कुंथुनाथ, अरनाथ, एवं अन्य) का जीवन चरित्र दिया गया है, में भी उनके लांछनों का कोई उल्लेख नहीं है। दिगम्बरों में भी पूर्व के ग्रन्थों, जैसे जातसिंह नन्दि के वरांगचरित्र (लगभग छठी सदी) में या जिनसेन (लगभग 750-840 ईस्वी पश्चात्) उनके शिष्य गुणभद्र (लगभग 830 A.D.) के क्रमश आदिपुराण और उत्तरपुराण में अथवा जिनसेन (783 ईस्वी पश्चात्- A.D.) के हरिवंश में अथवा रविषेण (676 A.D.) के पद्मचरित्र में ये सूचियाँ नहीं दी गई हैं। तिलोयपण्णत्ति (चतुर्थ या पांचवी सदी) में एक सूची दी गई है, किन्तु वह आज प्राप्य ग्रन्थ में बाद में हुए अंतःप (interpolation) रूप दिखाई देता है, जैसा कि इस तथ्य से स्पष्ट (evident) है कि एक स्थान पर उसमें बालचन्द्र सैद्धान्तिक का संदर्भ आया है। इसलिये तिलोयपण्णत्ति का साक्ष्य सावधानी 56 - तुलसी प्रज्ञा अंक 132-133 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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