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' सिद्धायतनों और शाश्वत जिनों का वृहद् विवरण जीवाभिगम सूत्र नामक उपांग ग्रंथ में उपलब्ध है। ये सिद्धायतन विभिन्न स्वर्गों तथा शिखरों पर पाये जाते हैं। ___ विभिन्न तीर्थंकरों के लांछनों का कोई भी निर्देश पुनः इन वर्णनों में नहीं पाया जाता है। लगभग छठी सदी में एक लेखन में वराहमिहिर कहते हैं कि अर्हतों के अनुयायियों के प्रभु घुटने तक पहुँचने वाली भुजाओं तथा वक्ष पर श्रीवत्स के चिह्न द्वारा प्ररूपित किये जाते हैं। दिखने में युवा एवं सुन्दर प्रभु का मुख शांतिपूर्ण जबकि उनका वस्त्र मात्र निवास होता है। (अर्थात् उनके शरीर पर कोई वस्त्र नहीं होता है।) इस प्रकार वराहमिहिर ने जिन-बिम्बों के लांछनों का कोई निर्देश नहीं दिया है।
मथुरा में हुई लगभग 300-315 ए. डी. (ईस्वी सन्)की परिषद में आर्य स्कन्दिल के वचन के युग में भी समवायांग सूत्र, कल्पसूत्र एवं स्थानांग सूत्र में लांछनों की सूची प्रस्तुत करने के लिये पर्याप्त अवकाश था। परन्तु ऐसे आगम ग्रंथों में भी लांछनों को नहीं पाते हैं। यहाँ तक कि लगभग ईस्वी सन् 453 के वल भी वाचना में भी हम ऐसे ग्रन्थों में उन्हें नहीं पाते हैं।
निष्कर्ष स्पष्ट है कि जिन बिम्बों की पादपीठों पर लांछन चौथी या पांचवी ईस्वी सदी से दिये जाने लगे होंगे, किन्तु पादपीठ पर उनकी स्थिति निश्चित नहीं थी, न ही कला में लांछन सार्वभौमिक रूप से लोकप्रिय थे। __लखनऊ के प्रादेशिक संग्रहालय में एक छोटा वर्गाकार स्तम्भ, क्रमांक J.268 है जिसमें केवल दो ओर निम्न उभारदार उकेरण हैं जो कि मात्र मथुरा के कंकाली टीले से लाई गईं हैं।
एक पर उभारे आकार में सिंहारूढ़ स्तम्भ की परिक्रमा करते हुए एक पुरुष और एक स्त्री दर्शाए गये हैं। उकेरण की शैली ऐसे युग की (लगभग द्वितीय या प्रथम सदी ईस्वी पूर्व) है। इस उभारदार आकार में स्तम्भ की परिक्रमा दर्शाती है कि यह सिंहस्तम्भ एक पवित्र वस्तु माना जाता था। यह हमें उस गरुड़ ध्वज का स्मरण कराता है जिसे विदिशा में विष्णु मन्दिर के समक्ष हेलिओडोरस द्वारा स्थापित कराया गया था। हमें तल-ध्वज राजधानी के बारे में ज्ञात है (जो बलराम के तीर्थं-मन्दिर के समक्ष स्थापित किया गया होना चाहिए) तथा बटवृक्ष-स्तम्भ जो सम्भवतः कुबेर के मंदिर के समक्ष स्तम्भ से है, एक मकरध्वज स्तम्भ जो सम्भवतः कामदेव या प्रद्युम्न के तीर्थ-मंदिर के समक्ष स्तम्भ से लाया गया।
यह सिंह-ध्वज जो मथुरा के जैनियों द्वारा पूज्य माना जाता है वह एक बड़े सिंहध्वज के उभारदार आकार में से प्रतिनिधित्व करने वाला लघु चित्र है। यह संभवतः महावीर को समर्पित किसी मंदिर के समक्ष निर्मित किया गया था, क्योंकि सिंह महावीर के लांछन रूप में ज्ञात था।
तुलसी प्रज्ञा जुलाई ---दिसम्बर, 2006 -
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