Book Title: Tulsi Prajna 2006 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 73
________________ इस प्रकार समर्थ उपादान एक ही होता है और उससे उत्पन्न होने वाले कार्य का ही वह समर्थ उपादान होता है। अत: कार्य का नियामक कारण त्रिकाली उपादान कारण न होकर क्षणिक उपादान कारण होता है। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि वस्तु की निजशक्ति ही उपादान कारण है और यह शक्ति दो प्रकार की है- द्रव्यशक्ति एवं पर्यायशक्ति। पर्यायशक्ति से युक्त द्रव्यशक्ति ही कार्यकारी होती है। द्रव्यशक्ति नित्य होती है और पर्याय शक्ति अनित्य। नित्यशक्ति के आधार पर कार्य की उत्पत्ति मानने पर कार्य के नित्यत्व का प्रसंग आता है, अतः पर्यायशक्ति को ही कार्य का नियामक कारण कहते हैं। निमित्त कारण द्रव्य के कार्य रूप परिणत होने में जो सहायक होते हैं, वे निमित्त कारण कहलाते हैं। सहकारी, सहयोगी, उपग्रही कारण निमित्त कारण हैं। सर्वार्थ सिद्धि में प्रत्यय, कारण एवं निमित्त को एकार्थवाची माना गया है।1 'पूरयतीति पूर्वं निमित्त कारणमित्यनर्थान्तरम्'12 अर्थात् जो पूरता है अथवा उत्पन्न करता है, इस व्युत्पत्ति के अनुसार पूर्व निमित्त एवं कारण पर्यायवाची हैं। यद्यपि उपादान कारण अथवा द्रव्य ही कार्य रूप परिणत होता है तथापि जिनकी सहायता से वह कार्यरूप परिणत होता है उनको कारण की संज्ञा दी जाती है, क्योंकि बिना किसी सहायक सामग्री के प्रायोगिक परिवर्तन हमें इस सृष्टि में दृष्टिगोचर होता हुआ नहीं दिखता है। बिना पाषाण के मूर्ति नहीं बनती किन्तु बिना मूर्तिकार एवं निर्माण सामग्री के भी स्वयं पाषाण मूर्ति रूप परिवर्तित नहीं होता। श्लोकवार्तिक में निमित्त की स्थिति का वर्णन करते हुए कहा गया है कि 'कार्यकाल में एक क्षण पहले से रहते हुए कार्योत्पत्ति में सहायता करने वाले अर्थ को निमित्त कारण कहते हैं।13 चूंकि निमित्त कारण द्रव्य की निज शक्ति रूप नहीं होते, इसलिए उनमें (निमित्त कारण के रूप) द्रव्यगत विशेषताओं का भी अभाव होता है। यद्यपि वही निमित्त पदार्थ किसी कार्य की अपेक्षा उपादान भी होता है और किसी की अपेक्षा निमित्त, किन्तु जब हम उस पदार्थ को निमित्त रूप मानते हैं तो वह पदार्थ उस कार्य की निज शक्ति न होकर बाह्य अथवा सहकारी शक्ति होता है। निमित्तों के अनुसार कार्य नहीं होता अपितु कार्य के अनुसार निमित्त होता है। आगम में निमित्त के दो प्रकार मिलते हैं - (1) प्रेरक निमित्त, (2) उदासीन निमित्त । प्रेरक निमित्त- कोई क्रियावान या सक्रिय द्रव्य होता है जो सहकारी अथवा उदासीन निमित्तों की सहायता से कार्य के निष्पन्न होने में सहायक होता है। प्रेरक निमित्त द्रव्य 68 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 132-133 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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