Book Title: Tulsi Prajna 2006 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 84
________________ संदर्भ ग्रन्थ - 1. संस्कृत हिन्दी कोश 9. वही, गाथा-1113 वामन शिवराम आप्टे, पृ. -581 बाहिरसंगा रेक्तं वत्थं धण धण्ण कुप्य भंडाणि। 2. वही, पृ. 59 दुपयचउप्पय जाणाणि चेव सयणासणो य तहा॥ 3. सर्वार्थसिद्धि, पृ. 274 10. पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय, श्लोक 115-118 11. सूयगडो- प्रथम स्कन्ध, 1, श्लोक-2 4. पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय, श्लोक-111 चित्तमंतचित्त वा परिगिज्झ किसामवि। या मूर्छा नामेय विज्ञातव्यः परिग्रहो ह्वोषः । अष्णं वा अणुजाणइ एवं दुक्ख णं मुच्चई। मोहोदयादुदीर्णो मूर्छा तु ममत्त्व परिणामः॥ 12. समणसुत्त गाथा-141 5. सूत्रकृतांग-(अमर सुखवोधिनी टीका) पृ. 21 13. पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय, श्लोक-112 परि-समन्तात ममत्त्व बुद्धया द्रव्य भावरूपेण 14. उत्तराध्ययन सूत्र, 32/8 गृह्यते इति परिग्रहः। दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो, 6. दशवैकालिक-6/19-20 मोहो हओ जस्स न होइ तण्हा जं पि वत्थं व पायं व कंवलं पाय पुंछणं तष्ठा हया जस्स न होइ लोहो, तं पि संजय लज्जट्ठा धारंति परिहरति य ॥ लोहो हओ जस्स न किंचणाइ।। न सो परिग्ग हो वुत्तो नाय पुत्तेण ताइणा। 15. उत्तराध्ययन-8/16 मूच्छा परिग्गहो वुत्तो इस वुत्तं महेसिणा॥ 16. दशवैकालिक-6/20 7. महाभारत-4/72 ... 17. दशवैकालिक-8/37 द्वे पढ़े बन्ध मोक्षाय निर्ममेति ममेतिच। 18. भगवती आराधना, पृ. 577 गाभा-1127 ममेति बध्यते जन्तुः निर्ममेति विमुच्यते॥ 19. समणसुत्तं, गाथा - 140 8. भगवती आराधना, गा. 1112, पृ. 570 20. सर्वार्थसिद्धि, 7/29 पृष्ठ-285 मिच्छत्तवेदराग तहेव हासादिया य् छद्दोसा। 21. मोक्षमार्ग प्रकाशक, तीसरा अधिकार- पृ. 70 चत्तारि तह कसाया चउदस अब्भंतरा गंथा। 22. ईशागस्योपनिषद्- श्लोक-1 टीका वरिष्ठ-शोध अध्येता प्राकृत एवं जैनागम विभाग जैन विश्वभारती संस्थान लाडनूं - 341 306 (राजस्थान) तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 2006 - 79 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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