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अन्य का स्वामी बनने की इच्छा ही आश्रव का कारण है, अतः अपनी आत्मा में स्थित होने का प्रयास करो ताकि आश्रवों का क्षय होकर शाश्वत सुख प्राप्त हो । आचार्य कुन्दकुन्द के शब्दों मे23_
अहमेक्को खलु सुद्धो णिम्ममओ णाणदंसणसमग्गो । तम्हि ठिदो तच्तिो सव्वे एदे खयं णेमि ||
सन्दर्भ :
1. भगवती आराधना, पृ. 56, 613, 57
2.
3.
आचार्य उमास्वामी, ‘तत्त्वार्थसूत्र', 7.18, 7.37
आचार्य अकलंक देव, 'तत्त्वार्थ वार्तिक: राजवार्तिक'
q. 545, 733, 741
भगवती आराधना, गाथा 1209, पृ. 613
4.
5.
वही, गाथा 1210, पृ. 614
6. वही, गाथा 1211, पृ. 614
7.
वही, गाथा 1213, पृ. 615
8. वही, गाथा 1216, पृ. 616
9.
वही, गाथा 1217, पृ.616
10. वही, गाथा 1218, पृ. 616
54
11. वही, गाथा 1219, पृ. 617
12. क्षु. जिनेन्द्र वर्णी, जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष, पृ. 2-608
13. आचार्य यतिवृषभ, “तिल्लोय पण्णत्ति, " अधिकार 4, गाथा क्र. 1436
14. भगवती आराधना,, पृ. 615
15. www. noetic. org/about. cfm वेबसाइट से इसके बारे में विस्तृत जानकारी मिल
सकती है।
16. देखिए www.silvacourse. com
17. (a) Jose Silva, 'The silva Mind Control Method' (Pocket Books, New
York)
(b) Jose Silva and Philip Miele, The Silva Method '
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तुलसी प्रज्ञा अंक 132-133
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