Book Title: Tulsi Prajna 2006 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 34
________________ या ताल के किनारे बैठकर बिना कारण पानी को ही इधर-उधर फैंक रहे हैं, कहीं रास्ते में चलते हुए वृक्षों के पत्ते, फल फूलों को तोड़-तोड़कर इकट्ठे ढेर लगा रहे हैं, ये समस्त कार्य बिना प्रयोजन किये जाएं तो सिवाय जीववध होने के क्या लाभ हो सकता है ? वृक्षादिपुष्पादि के उखाड़ने से, पृथ्वी खोदने से, पानी के फैलाने से स्थावर हिंसा होने के सिवा उनके आश्रय रहने वाले त्रस जीवों का भी घात होता है, इसलिये ऐसे प्रमादाचरणरूप अनर्थदण्ड को कभी नहीं करना चाहिये। बहुत से व्यक्ति तलवार आदि वस्तुओं को दूसरों को देते फिरते हैं, बहुत से पशुओं को मारने बांधने वाली चीजें-पींजरा, कठैरा आदि बांटते हैं अथवा मांगने पर दे देते हैं, ये सब चीजें सिवाय दूसरे जीवों को कष्ट पहुंचाने के और किसी काम में नहीं आ सकती, इसलिए इन्हें मारने, बांधने वाले हिंसा के उपकरण- हिंसा की सामग्री को दूसरों को देने से व्यर्थ ही उनसे की जाने वाली हिंसा का भागीदार बनना पड़ता है। बहुत से लोग ऐसे देखे जाते हैं जो चूहों को पकड़ने वाले पीजरों को घर-घर पहुंचाते हैं, बहुत से मक्खियां, मच्छर, जूआं, बिच्छू आदि विषैले जीवों के मारने वाले विषैले पदार्थों का प्रयोग बतलाने के साथ स्वयं अपने पास से वे चीजें दे देते हैं। बहुत से किन्हीं जीवों को ध्वंस करने के लिए अपने यहां से अग्नि दे देते हैं, इत्यादि रूप से जो प्रवर्तन करते हैं वह सब हिंसादान नामक अनर्थदंड हैं। इसलिये ऐसे बिना प्रयोजन के हिंसा दान का त्याग करना हिंसा दान अनर्थदण्ड-त्याग-व्रत है। साक्षात् जीवों की जान लेने वाले इन प्रयोगों से जहां तक हो प्रयत्नपूर्वक बचना चाहिये। जिन बातों के सुनने से रागद्वेष की वृद्धि होती हो जैसे श्रृंगाररस के बढ़ाने वाली कथायें, युद्ध की बातें, भोजन की कथायें, राजाओं की बातें, देश की बातें, जिन बातों के सुनने सुनाने से बिना प्रयोजन राग, द्वेष बढ़ता हो, उपन्यासादि, झूठे किस्से-कहानियों का पढ़ना-बढ़ाना, झूठे शास्त्रों का सुनना-सुनाना, दूसरों को उनकी शिक्षा देना आदि सब दुष्ट कथायें कहलाती हैं, इन कथाओं से पुण्यात्रव नहीं होता, किन्तु पापात्रव की वृद्धि होती है। जुआ खेलना भी अनर्थदंड है, कारण इसके खेलने से भी बिना प्रयोजन पापबन्ध होता है। जिस प्रकार गाड़ी में जुआ (जो बैलों के कन्धे पर रखा जाता है) सबसे आगे रहता है उसी प्रकार यह जुआ खेल भी समस्त अनर्थों में पहला अनर्थ समझा जाता है। जुआ खेलने वाला किसी अनर्थ से बच नहीं सकता, क्योंकि जो अन्याय का पैसा आता है उससे अन्याय के कार्य ही किये जाते हैं। जो पुरुष ऊपर कहे हुए अनर्थदंडों को छोड़ देता है तथा दूसरे और भी जो अनर्थदण्ड समझे जाते हैं उन्हें समझकर छोड़े देता है उसी का अहिंसाव्रत निरन्तर निर्दोष पलता है। जो तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 2006 - 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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