Book Title: Tulsi Prajna 2006 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 37
________________ 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 32 रसजानां च बहूनां जीवानां योनिरिष्यते मद्यं । मद्यं भजतां तेषां हिंसा संजायतेऽवश्यं । पुरुष. 63 धर्माहि देवताभ्यः प्रभवति ताभ्यः प्रदेयमिह सर्व । इति दुर्विवेककलितां घिषणां न प्राप्य देहिनो हिंस्याः ॥ पुरुष 80 देवतातिथि प्रीत्यर्थ मन्त्रौषधिमयायवा । न हिंसया: प्राणिनः सर्वे अहिंसानामसतं व्रतम् ॥ वरांगचरित, 15. 112 निशायामशनं हेयमहिंसाव्रतवृद्धये । मूलव्रताविशुद्धयर्थं यमार्थपरमार्थतः ॥ - सागारधर्मामृत, 4. 241 गृहकार्याणि सर्वाणि दृष्टिपूताति कारयेत् । द्रव्य द्रव्याणि सर्वाणि पटपूतानि योजयेत् ॥ उपासकाध्ययन, श्लोक 321 पुरुषार्थसिद्धयुपाय- पं. मक्खनलाल शास्त्री तिलक, भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत्परिषद्, सोनागिर, दतियो (म. प्र. ) जैन संस्कृति और पर्यावरण-संरक्षण, डॉ. प्रेमसुमन जैन, अरविन्द प्रकाशन, उदयपुर Jain Education International 29, विद्या विहार कॉलोनी उत्तरी सुन्दरवास उदयपुर - 313001 ( राजस्थान) For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा अंक 132-133 www.jainelibrary.org

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