Book Title: Tulsi Prajna 2006 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 43
________________ लिया। मुझे कुछ तो समझना चाहिए था। लेकिन 'जीवन में जो भूल एक बार हो जाती है वह हो ही जाती है।" अब दीदी के पत्र पर पुनः ध्यान दें। Immortal spirit of the dead जिसे आस्ट्रिया की उस वृद्धा ने अपने अंदर realise किया था, उनका पत्र उस realisation की अभिव्यक्ति है। दृश्य और अदृश्य के इस छोटे-से जगत के पार किन्नर-लोक तक फैले एक ही रागात्मक हृदय के साथ तादात्म्य दीदी को युद्ध की विभीषिका के बीच शोण नद के प्रत्येक बालुका-कण में बाणभट्ट की आत्मा के अस्तित्व की अनुभूति देता है। वही तादात्म्य आस्ट्रिया में भी बाणभट्ट से 'साक्षात्कार' का साक्षी बनता है। सूक्ष्म जगत में दूरी का बन्धन नहीं । बाणभट्ट जन्में और मर गए, यह केवल स्थूल पर टिकी अपारदर्शी आंखों का सत्य है, वहाँ का नहीं। आलस्य, प्रमाद और क्षिप्रकारिता से मुक्त दीदी की आत्मा देह के भीतर भी रमती थी। वह अन्तर्जगत की उस रागात्मक लय से अनुबन्धित थी जो अद्वैत रूप में सर्वत्र व्याप्त है, इसलिए शोण नदी की लहरों ने उन्हें वह सब कह दिया जो वे हमें नहीं बतलातीं और इसीलिए उसके तट पर बिछे रजकणों ने अक्षर बन कर उनके लिए अतीत के वे पृष्ठ खोल दिए जिन्हें हम नहीं पढ़ पाते। आस्ट्रिया की वह वद्धा, जिसे मैंने कभी देखा नहीं, पाँच दशकों से अनजाने रूप में मन में छाई रही है। 'भोले ! बाणभट्ट केवल भारत में ही नहीं होते' इस एक वाक्य में उन्होंने एक महाग्रन्थ की ही रचना कर दी। महाग्रन्थ या महापुरुष, ये किसी को भी सम्पूर्ण जीवनचर्या नहीं सिखाते। यह दायित्व वे कभी लेते ही नहीं। वे केवल हमारी अन्तश्चेतना को जागृत करते हैं और हमें सूत्र देते हैं, उस रागात्मक हृदय के साथ आत्मानुभूति का, जो नर-लोक से किन्नर-लोक तक व्याप्त है। 'बाणभट्ट केवल भारत में ही नहीं होते'- यह कथन वैसा ही सूत्र है। अपनी वृद्धावस्था को भूल कर, सत्य की खोज में भटकती, हर व्यक्ति में बाणभट्ट को देखती, एक जन्तु की आँखों में बुद्ध के संदेश को पढ़ती उस आस्ट्रिया महिला ने मुझे उन अच्छाइयों को, जिनसे प्रकृति ने जड़ और चेतन सबको समान रूप से अलंकृत किया है, देखने की दृष्टि दी, जिनके पास से मैं उस कथन को याद रखे बिना यों ही निकल जाता। सर आर्थर कोनन डोयल के कथा-साहित्य को पढ़ते समय उस कथन की गहनता का मुझे और भी तीव्रता से अनुभव हुआ और मुझे लगा कि हितोपदेश की बातें केवल नीति ग्रन्थों में ही नहीं, जासूसी कहानियों में भी पढ़ी जा सकती हैं। प्रकाश की किरणें परावर्तित होती हैं ताकि कहीं से कुछ अंधकार में झाँकता रहे। मन के ब्रह्मांड में भी सद्विचारों के तारे टिम-टिम करते हैं और इसलिए अन्तरिक्ष की तरह अन्तर का भी एक-न-एक कोना सदा आलोकित 38 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 132-133 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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