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लगभग जितनी तेज गति पर ही होता है। हमारे अनुभव में आने वाली सामान्य .' गति में वह पकड़ में नहीं आता। देश और काल का छोटा बड़ा होना उस व्यक्ति को नजर नहीं आयेगा जो देश को मापने वाले मानदण्ड और काल को नापने वाली घड़ी के साथसाथ स्वयं भी चल रहा है। वह केवल उसी को नजर आयेगा जो केवल एक स्थान पर ही खड़ा है। इस आधार पर आईन्स्टीन ने देश और काल के दो नामकरण किये-जब हम स्थिर होते हैं और देश और काल को नापने वाली हमारी छड़ और घड़ी भी स्थिर होती है तब जो लम्बाई और कालावधि हमें प्राप्त होती है वह ठीक (Proper) लम्बाई और कालावधि है किन्तु जब हम स्वयं स्थिर होते हैं
और हमारी अपेक्षा देश-काल को मापने वाली छड़ और घड़ी बहुत तेजी से
चल रही होती है तो उस छड़ की लम्बाई और काल का माप सापेक्ष होता है। 1992 में उपर्युक्त स्थापना को वास्तविक प्रयोग करके जांचा गया। वायुयान में चार अत्यन्त सूक्ष्म समय देने वाली आणविक घडियां रखकर पूरब और पश्चिम दोनों दिशाओं में पृथ्वी के चारों ओर घुमाई गई और यह पाया गया कि पृथ्वी पर ही रखी घड़ियों का समय कुछ पीछे हो गया है। इसका यह अर्थ होता है कि समय के न्यूनाधिक होने का तथ्य वास्तविक है, दृष्टि का भ्रम नहीं है।
द्रव्यमान की वृद्धि
___ यदि कोई पदार्थ प्रति सेकेण्ड 100 फुट गति से चल रहा है और उसे 101 फुट प्रति सेकेण्ड की गति से चलाना चाहें तो इसके लिए जितनी अतिरिक्त ऊर्जा लगानी पड़ेगी-8000 फुट प्रति सेकेण्ड से चलने वाले पदार्थ की गति 8001 फुट प्रति सेकेण्ड करने के लिए भी उतनी ही ऊर्जा लगानी चाहिए। किन्तु ऐसा होता नहीं है, क्योंकि अधिक तेज चलने वाले पदार्थ में अधिक गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) आ जाती है, मानो उस पदार्थ का द्रव्यमान बढ़ जाता है। परापरमाणु स्तर पर यह स्थिति वस्तुत: बन जाती है कि जब कण प्रकाश की गति जैसी तीव्र गति से चलते हैं तो उनका द्रव्यमान सचमुच बढ़ जाता है। इस तथ्य का पता हमें इस बात से चला कि परापारमाणविक कण (Sub-Atomec-Partivles) भिन्न-भिन्न गतियों से चलते हैं और उनकी गतियों के अन्तर से उनके द्रव्यमान में भी अन्तर आ जाता है।
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- तुलसी प्रज्ञा अंक 132-133
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