Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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__ [१९ भाँति व्यतीत हो गई।
(श्लोक २०२-४) .. सुबह जब वे शय्या त्याग कर उठे तो भाटों के शंख की भाँति उदात्त और मधुर स्वर सुनाई पड़ा -
(श्लोक २०५) 'घने अन्धकार से मलिन पद्मिनी की शोभा को हरण करने वाली तथा मनुष्य व्यवहार को निरुद्ध करने वाली रात्रि वर्षाऋतु की भाँति व्यतीत हो गई है। तेजस्वी और प्रचण्ड रश्मिरथी सूर्य उदित हो गया है । काम-काज का सुदृढ़ प्रभातकाल शरद् ऋतु की भाँति उपस्थित हो गया है। तत्त्वबोध से बुद्धिमान व्यक्ति का हृदय जिस प्रकार निर्मल हो जाता है उसी प्रकार शरत् के आविर्भाव से सरोवर और सरिता का जल निर्मल हो गया है । प्राचार्यों के उपदेश से ग्रन्थ जिस प्रकार संशय रहित और सरल हो जाता है सूर्य किरण से शुष्क और कर्दमरहित पथ उसी प्रकार सरल हो गया है। पथ के मध्य से जिस प्रकार गाड़ियों का समह चलता है नदी भी उसी प्रकार तट की मध्यवर्ती होकर धीरे-धीरे प्रवाहित होती है। पथ के दोनों पोर शस्य क्षेत्र में उत्पन्न श्यामक, नीवार, बालुक, कुवलय आदि शस्य और फल भार से पथ जैसे पथिकों के अतिथि सत्कार को प्रवृत्त हो गया है। शरत्काल के समीर से अान्दोलित इक्ष वक्षों के शब्द जैसे पुकार-पुकार कर कह रहे हैं -हे पथिकगण ! तुमलोग अपने-अपने यान और वाहनों पर प्रारोहण करो। पथ पर चलने का समय हो गया है। मेघ अब सूर्य किरणों से तृप्त पथिकों के लिए मात्र छत्र का कार्य कर रहे हैं । सार्थ के वृषभगण अपने कुम्भ से भूमि को समतल कर रहे हैं ताकि पथ चलते पथिकों को कोई कष्ट न हो । पहले पथ पर जो जल वेग से गर्जन करता-करता प्रवाहित हो रहा था अब वर्षा ऋतु के मेघ की भाँति वह भी अदृश्य हो गया है। फलों के भार से अवनत लगता और पद-पद पर प्रवाहित निर्मल जल के झरने से बिना परिश्रम के ही पथिकों के लिए पथ पाथेय से पूर्ण हो उठे हैं। उत्साही और उद्यमी व्यक्तिगण राजहंस की भाँति दूर देश जाने के लिए तत्पर हो गए हैं।' (श्लोक २०६-२१७)
श्रेष्ठी भाट के मुख से इस मंगलपाठ को सुनकर समझ गए कि ये लोग यह सूचना दे रहे हैं कि यात्रा का समय हो गया है। उन्होंने उसी समय यात्रा के भेरी निनाद का आदेश दिया। उस भेरी