Book Title: Tilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Author(s): Pushpa Gupta
Publisher: Publication Scheme

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Page 12
________________ तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन राजा भोज के जिनागमोक्त कथाओं में कुतूहल होने पर उनके विनोद हेतु तिलक मंजरी की रचना की थी । 2 (2) इसके अतिरिक्त धनपाल ने अपने कनिष्ठ भ्राता शोभन का परिचय दिया है । शोभन ने 24 तीर्थंकरों की स्तुति में यमक अलंकारमण्डित स्तुतिचतुविशतिका' की रचना की थी । यह तीर्थेशस्तुति तथा शोभन -स्तुति के नाम से भी प्रसिद्ध हुई थी। इस स्तुति पर धनगल ने वृत्ति लिखी है । इस वृत्ति के प्रारम्भ के सात पद्यों में उसने अपने अनुज का परिचय दिया है जिसमें से प्रारम्भिक दो पद्य तिलक मंजरी में भी प्राप्त होते हैं 5 शोभन न केवल नाम से ही अपितु सुन्दर वर्णयुक्त शरीर से भी सुशोभित था । वह अपने गुणों से अत्यन्त पूज्य व प्रशंसनीय था । वह साहित्यसागर का पारगामी था । उसने कातन्त्र व चन्द्र व्याकरण का अध्ययन किया था । जैन-दर्शन में तो वह निष्णात था ही, बौद्ध दर्शन का भी उसने गहन अध्ययन किया था, अत: वह समस्त कवियों में आदर्श स्वरूप था । 6 इस टीका की रचना धनपाल ने शोभन की मृत्यु के पश्चात् की थी, जैसाकि उसने अपनी वृत्ति में कहा है । 7 (3) शोभन के अतिरिक्त धनपाल के एक छोटी बहिन सुन्दरी भी थी, जिसके लिए उसने वि. सं. 1029 में पाइयलच्छीनाममाला नामक प्राकृत कोष की रचना की थी 18 1. 2. 3. 4. स्तुतिचतुर्विंशतिका - (स.) हीरालाल रसिकदास कापड़िया, आगमोदय समिति, बम्बई 1926, पृ. 1, 2 5. तिलक मंजरी - प्रस्तावना, पद्य 51, 52 6. स्तुतिचतुर्विंशतिका, धनपाल कृत टीका, 3, 4 7. एतां यथामति विमृश्य निजानुजस्य. तस्योज्ज्वलं कृति मलंकृतवान् स्ववृत्त्या । अभ्याfथतो विदघता त्रिदिवप्रयाणं, तेनैव साम्प्रतकविर्धनपालनामा ॥ : पाइयलच्छीनाममाला, गाथा 276, 277 वही, 50, पृ. 7 स्तुतिचतुविशतिका, काव्यमाला (सप्तम गुच्छक. 1890 Velankar, H D. Jinaratna Kosa, Part I, B.O.R.I., 1944, p. 387 8. . - स्तुतिचतुर्विंशतिका, पद्य 1

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