Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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( १३ )
ऐसे विद्यानन्दी आचार्यश्रीने तत्वार्थलकाररूप ग्रंथमें अज्ञजनोंको बोध करने के लिये, हम जिनकी गणना नही कर सकते ऐसे जीवादि प्रमेयरत्न भर दिये हैं । एसे प्रमेवरत्न भरनेसे आचार्य विद्यानन्दीजी लोकोत्तर प्रतिभासे भूषित थे ऐसा दृढ विश्वास उत्पन्न होता है ।
___आचार्य श्री विद्यानन्दजीने रचे हुए तत्वार्थ श्लोकवातिकके प्रारंभ में मगल श्लोककी रचना को है। अज्ञान तथा रागादि दोषोंको-मलोंको जो नष्ट करके निर्मल सुखको देता है उसे मंगल कहते हैं ।
शिष्योंको समझाने के लिए उस मंगल श्लोकको यहां लिखकर उसके पांच अर्थोंका यहां वर्णन करते हैं
श्रीवर्धमानमाध्याय घातिसङ्घातघातनम् ।
विद्यास्पद प्रवक्ष्यामि तत्वार्थश्लोकवातिकम् ॥ इस मंगल श्लोकका प्रथमतः मैं अर्थ लिखता हूं ।
मैं विद्यानन्द स्वामी अन्तरंग तथा बहिरंग दो लक्ष्मीओंसे सतत वृद्धिको जो प्राप्त हुए हैं तथा ज्ञानावरणादि सेंतालिस कर्म प्रकृतिओंका जिन्होंने समूल उच्छेद किया है तथा जो 'विद्यास्पद' अर्थात विद्यानन्द नाम धारक ऐसे मझे आलंबन शरण्य-रक्षक है ऐसे श्री वर्धमान नामक चौवीसवे तीर्थंकर को मन, वचन तथा शरीरसे चिंतन कर उमास्वामी आचार्य विरचित तत्वार्थ मोक्षशास्त्र नामक प्रसिद्ध जैनदर्शन जिसको अर्ध नामसे लोग तत्त्वार्थ कहते हैं तत्त्वार्थसूत्रमें वर्णित प्रमेयोंपर बत्तीस अक्षरात्मक अनुष्टुप् छन्दस्वरूप इलोकबद्ध वार्तिकोंकी रचना मैं करूंगा इस प्रकार श्लोकका अभिप्राय है ।
इस श्लोक में प्रवक्ष्यामि क्रियापद है उसका स्पष्टीकरण-यह क्रियापद भविष्यत्कालवाच लट्लंकार की क्रियाको व्यक्त करता है । अर्थात 'मैं कहुंगा' ऐसा अभिप्राय व्यक्त होता है । अहं शब्द यहां यदि रखा जाता तो पुनरुक्तिका दोष आ जाता । जो अभिप्रायसे जाना जाता ह उसको पुनः कहना उसे पुनरुक्त कहते हैं । प्रवक्ष्यामि-मैं विद्यानन्द स्वामी प्रकर्षसे-अर्थात् युक्ति पूर्वक परपक्षनिराकरणपर्वक वक्ष्यामि कहंगा ऐसा अभिप्राय यहां है क । तत्त्वार्थश्लोकवातिकम तुम क्या कहोगे ? तत्त्वार्थ श्लोकवातिकको मैं कहंगा । नामका एकदेश संपूर्ण नाममें प्रवत्त होता है । जैसें सत्यभामा नाम सत्या शब्दसे कहा जाता है । उमास्वामी आचार्यजीनेही यह तत्त्वार्थ मोक्षशास्त्र नामक प्रसिद्ध जैनदर्शन रचा है । इसे ही उनके चरणोंकी स्तुति क नेमें निपुगा द्विान-तत्त्वार्थ' इस नामसे बोलते हैं ।
___ अत्यन्त प्रिय व्यक्तिका वाच्य जो नाम है उसका अर्धउच्चारण करनेकी प्रसिद्धि है।
. तत्त्वार्थसूत्रमें कहे हुए प्रमेकों के ऊपर बत्तीस अक्षरात्मक अनुष्टुप छन्दस्वरूप श्लोकबद्ध वार्तिकोंकी रचना में करता है ऐसी प्रतिज्ञा आचार्य विद्यानन्दजीने की है । वार्तिकका लक्षण