Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्धचिंतामणिः
काओंसे यावत् तत्त्वोंका प्रकाश हो जाता है । यहां वर्तिकाओंके समुदायसे प्रदीप लक्ष्यार्थ है । स्वामीजीको पञ्चम अर्थ भी अभीष्ट है
___" अहं तत्त्वार्थश्लोकवातिकमाध्याय प्रवक्ष्यामि । चारधिनयोंमें ज्ञानविनय प्रधान है शुद्धांतःकरणसे स्वात्मोपलब्धिके उपयोगी स्वकीय ज्ञानको बढाना और उसकी बहुत मान्यता करना ज्ञान विनय है । अत: अपनी शुद्धात्मामें निरवय स्वकीय-ज्ञानकी प्रतिष्ठा करना आवश्यक गुण है । सम्पूर्ण परद्रव्योंसे चित्त-वृत्तिको हटाकर अपनी आत्माके स्वाभाविक गुणोंका ध्यान करना ही सिद्धिका साक्षात् कारण है। अतः श्रीविद्यानंद सामी अपनी आला पूर्ण रूपसे विराजमान ज्ञानस्वरूप श्लोकावाधिक मा स्वयं स्वान कर पा .. उससे मारी ग्रंथन करनेकी प्रतिज्ञा करते है । ( कथम्भूतं लोकवार्तिक) कैसा है श्लोकवार्तिक ग्रंथ, ( श्रीवर्धमान ) ऊहापोहशालिनी, प्रतिवादिमत्तेभसिंहनादिनी, नवनवोन्मेषधारिणी, स्याद्वादसिद्धांतप्रचारिणी, विद्वच्चेतश्चमत्कारिणी, अध्येतृबोधवेशद्यकारिणी, ऐसी तर्कणा लक्ष्मीसे उत्तरोतरवृद्धिको प्राप्त हो रहा है। ( पुनः कथम्मूतं श्लोकवार्तिक ) फिर कैसा है श्लोकवार्मिक ग्रंथ " आध्यायपातिसंघातपातनम् " आङ्, थी, इण घञ् चारों ओरसे बुद्धिके समागम द्वारा मतिज्ञानावरण और श्रुतज्ञानावरण कर्मके सर्वघातिपटलोंका उदयाभावरूपक्षय करदेनेवाला है। यहां आध्याय पदकी आवृत्ति कर दो बार अन्वय किया है अथवा घातिसंघातघासनम् " कुयुक्तियों या अपसिद्धान्तोंके समुदायका विनाश कर देनेवाला है । (पुनः कथम्भूतं श्लोकवाचिक ) फिर कैसा है श्लोकवार्मिक ग्रंथ (विद्यास्पदं) प्रतिवादियों के द्वारा विचार, लाये गये पूर्वपक्षोंमें न्याय, मीमांसा, चेदांत, बौद्ध, आदिकोंकी तत्त्वविद्याओंका तथा उत्तरपक्षमे सिद्धांतित आहेत सिद्धांत और न्यायविद्याका स्थान (घर) है। ऐसे तत्वार्थसूत्रके श्लोकका यानी यशःकीर्तनका वार्तिक अर्थात् वाताओंका समुदाय यह ग्रंथ अन्वर्थनामा है । वृत्तिरूपेण कृतो ग्रन्थो वार्तिक । सत्त्वार्थसूत्रके ऊपर श्लोकोंमें रचागया वार्तिक है।
श्री विद्यानंद स्वामी मंगलाचरण श्लोकके विषयमे कार्यकारण भावसंगतिको दिखलाते हैं । श्योंकि विना संगतिके बोले हुए वाक्य अप्रमाण होते हैं जैसे कि
जरदवः कम्बलपाणिपादो, द्वारि स्थितो गायति मंगलानि ।
तं ब्राह्मणी पृच्छति पुत्रकामा, राजन सितायां लशुनस्य कोऽर्थः ।। ___ इसका अर्थ:---एक बुढा बैल है। हाथ पैरोंमे कम्बल है । ( बैलोंके गलेमें लटकनेवाला चमडा) द्वार पर बैठा हुआ मंगल गा रहा है । उसको पुत्रकी इच्छा रस्वती हुयी बामणी पूंछती है कि हे राजन् ! मिश्री लहसुन डालने का क्या फल है। ऐसे अण्ट सण्ट वाक्योंकी पूर्वापर अाम संगति नहीं है । इस कारण अप्रमाण होते हैं। अतः प्रामाणिक पुरुषों को संगतियुक्त बाक्य ही बोलने चाहिये संगति छह प्रकारकी है