Book Title: Tattvarthashloakvartikalankar Part 04
Author(s): Suparshvamati Mataji
Publisher: Suparshvamati Mataji

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Page 17
________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 4 पुनरवधिज्ञानावरण- क्षयोपशमविशेषः क्षेत्रकालादिवत्तस्य तदप्रतियोगित्वात् / तद्व्यवच्छेदे भवस्य साधारणत्वात्सर्वेषां साधारणोऽवधिः प्रसज्येत। तच्चानिष्टमेव। परिहतं च भवतीत्याह। प्रत्ययस्यान्तरस्यातस्तत्क्षयोपशमात्मनः / प्रत्यग्भेदोऽवधेर्युक्तो भवाभेदेऽपि चाङ्गिनाम् // 7 // कुत: पुनर्भवाभेदेऽपि देवनारकाणामवधिज्ञानावरणक्षयोपशमभेद: सिद्ध्येत् इति चेत्, स्वशुद्धिभेदात्। सोऽपि जन्मान्तरोपपत्तिविशुद्धिभावात्, नाभेदात्। सोऽपि स्वकारणभेदात्। इति न पर्यनुयोगो विधेयः कारणविशेषपरम्परायाः सर्वत्रापर्यनुयोगार्हत्वात् / क्षयोपशमनिमित्तः षड्विकल्पः शेषाणाम्॥२२॥ देवनारकियों के भी अन्तरंग कारण क्षयोपशम विद्यमान है। तभी बहिरंग कारण भव को मानकर सभी देवनारकियों के अवधिज्ञान या विभंगज्ञान एकसा नहीं होता है। उस अवधिज्ञान को देव और नारकियों के. एक समान मानना अनिष्ट है। उसी का परिहार करने के लिए आचार्य कहते हैं - अन्तरंग में होने वाले उस अवधिज्ञानावरण के क्षयोपशम कारणस्वरूप देव और नारकियों में पृथक् पृथक् भेद हैं। अत: देव और नारकियों के साधारण बहिरंग कारण भव का अभेद होने पर भी भिन्न-भिन्न प्रकार का क्षयोपशम होने से अवधिज्ञान में भेद है। एक समान अवधिज्ञान नहीं है // 7 // शंका - भव का अभेद होने पर भी फिर देव और नारकियों के अवधिज्ञानावरण कर्म सम्बन्धी क्षयोपशम का भेद किस कारण से सिद्ध होता है? समाधान - अपनी-अपनी आत्मा की शुद्धि के भेद से क्षयोपशम में भेद हो जाता है। अनेक जन्मान्तरों में उत्पन्न विशुद्धियों के सद्भाव से जीवों के भिन्न-भिन्न शुद्धि हो जाती है। अभिन्न कारण से भिन्नभिन्न कार्यों की उत्पत्ति नहीं हो सकती है। कार्यभेद है तो कारणभेद अवश्य होता है। वह विशुद्धि या पुरुषार्थ आदि के भेद भी अपने-अपने कारणों के भेद से होते हैं। इस प्रकार प्रश्न परम्परा उठाना योग्य नहीं है। क्योंकि कारण विशेषों की परम्परा सर्वत्र पर्यनुयोग शंका उठाने के योग्य नहीं मानी गई है। अर्थात्-देवों में अवधिज्ञान के स्वभाव भेदों की प्राप्ति में जन्मान्तर के कुछ परिणाम भी उपयोगी होते हैं अतः देवों में अवधिज्ञान भेदयुक्त होता है। आत्मा के पुरुषार्थ या कारणों से विशुद्धि के भेद होने से क्षयोपशम का भेद हो जाने पर ज्ञानभेद हो जाता है। इन प्रमाणप्रसिद्ध कार्यकारण भावों में कुचोद्य' (झूठी शंका) नहीं उठाना चाहिए। यदि भवप्रत्यय अवधि देव, नारकियों के है तो क्षयोपशम निमित्त अवधि किनके होती है? इस प्रकार की जिज्ञासा का उत्तर है - शेष तिर्यंच और मनुष्यों के क्षयोपशम के निमित्त से होने वाला छह विकल्पवाला अवधिज्ञान होता है॥२२॥

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