Book Title: Surya Sahasra Nam Sangraha Trayam Author(s): Dharmdhurandharsuri Publisher: Jain Vidya Shodh SamsthanPage 72
________________ श्रीसूर्यसहस्रनामसङ्ग्रहवयम् “संविभागी" 212 इति / संविभजन-संविभागः, सोऽस्यास्तीति सः; सर्वेषामदृष्टानुसारिफलजनक इत्यर्थः / पृथक् तत्तत्स्वरूपेण विवेचनंसंविभागः, तद्वानिति वा // 212 // "संप्रवर्तकः" 213 इति / समीचीनतया प्रवर्तयति जनान् इति संप्रवर्तकः, सन्मार्गप्रवर्तकत्वात् / / 213 // "संवत्सरः" 214 इति / सं-सम्यक्प्रकारेण वसन्ति ऋतवोऽत्रेति संवत्सरः, तज्जनकत्वात् / / 214 // "संवत्सरकरः" 215 इति / मेषादिराशिगत्या संवत्सरं करोति-प्रवर्तयतीति सः // 215|| "सुनयः" 216 इति / सुष्टु नयति-परमपंदं प्रापयति जनानिति स: / सुष्टुशोभना: नया:-शास्त्राणि ज्योतिषादीनि यस्माद् वा // 216 / / "सुनेत्रः" 217 इति / सुष्टु-अप्रतिहततेजांसि नेत्राणि यस्मात् स तथा / सुष्टु-वियद्गामी नेत्र:-रथो यस्येति वा / 'नेत्रमर्थे गुणे वस्त्रभेदे मूले द्रुमस्य च / रथे चक्षुषि नद्यां च / / ' इति मेदिनिकारः / / 217 // “सङ्कल्पयोनिः" 218 इति / सङ्कल्पेन-इच्छामात्रेण योनि:-उत्पत्तिर्यस्मात् सः / सङ्कल्प:-समीचीनो व्यवहारः, तस्य योनि:-उत्पत्तिस्थानं वा / / 218|| “सन्तापनः" 219 इति / सम्यक् तापयति नरकभोगादिना पापिन इति स तथा // 219 // "सन्तापकृत्" 220 इति / सन्तापं कृन्ततीति स तथा // 220 / / : "सन्तपन:" 221 इति / सन्तपतीति सन्तपन: केवलज्योतिःस्वरूपत्वात् / सन्तपति शत्रूनिति वा / / 221 // “सुराध्यक्षः". 222 इति / सुराणामध्यक्षः-अधिकारी, * तन्निग्रहाऽनुग्रहकारित्वात्। सुराणामाधि:-मानसी व्यथा, तस्यामक्ष:-चक्रं वा 68Page Navigation
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