Book Title: Surya Sahasra Nam Sangraha Trayam
Author(s): Dharmdhurandharsuri
Publisher: Jain Vidya Shodh Samsthan

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Page 177
________________ श्रीसूर्यसहस्रनामसङ्घहत्रयम् सदायोगः सदाभोगः, सदाश्रेष्ठः सदाशिवः / सदागतिः सदासौख्यः, सदाविद्यः सदोदयः / / 77 // सुघोषः सुमुख: सौम्यः, सुखदः सुहितः सुहृत् / सुगुप्तो गुप्तिभृद् गोप्ता लोकाध्यक्षो दमेश्वरः / / 78|| बृहन् बृहस्पतिर्वाग्मी, वाचस्पतिरुदारधीः / मनीषी धिषणो धीमान्, समुखीशो गिरांपतिः // 79 // नैकरूपो नयोत्तुङ्गो, नैकात्मा नैकधर्मकृत् / अविज्ञेयो प्रतर्कात्मा, कृतज्ञः कृतलक्षणः // 8 // ज्ञानगर्भोदयागर्भो, रत्नगर्भ: प्रभास्वरः / पद्मगर्भो जगद्गर्भो हेमगर्भः सुदर्शनः // 81 // लक्ष्मीवांत्रिदशाध्यक्षो दृढीयातिनईशिता / मनोहरो मनोज्ञाङ्गो, धीरो गम्भीरशासनः // 42 // धर्मयूपो दयायोगो, धर्मनेमिमुनीश्वरः। धर्मचक्रायुधो देवः, कर्महा धर्मघोषणः // 83 // अमोघवागमोघज्ञो, निर्मलामोघशासनः / सुरूपः सुभगस्त्यागी, समयज्ञः समाहितः // 8 // सुस्थितः स्वास्थ्यभाक् सुस्थो नीरजस्को निरुद्धतः। अलेपो नि:कलङ्कात्मा वीतरागो गतस्पृहः / / 85 // वश्येन्द्रियो विमुक्तात्मा, नि:सपनो यतेन्द्रियः / प्रशान्तोऽनन्तधामर्षि मङ्गलं मलहानघः // 86 // अनीदृगुपमाभूतो, तुष्टिर्दैवमगोचरः। अमूर्तो मूर्तिमानेको, नैको नानैकतत्त्वदृक् / / 87 / / 169

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