Book Title: Surya Sahasra Nam Sangraha Trayam
Author(s): Dharmdhurandharsuri
Publisher: Jain Vidya Shodh Samsthan
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________________ श्रीसूर्यसहस्रनामसङ्ग्रहवयम् सञ्चारयतीति स तथा // 688 // "वृषाकपिः" 689 इति / वृष-धर्म, आ-समन्तात्, कपति-गच्छतीति स तथा / वृषाकपि:-विष्णुर्वा प्रतिकल्पं तदुत्पादकत्वात् // 689 / / "वृषध्वजः" 690 इति / वृष एव ध्वज:-चिह्नं यस्य स तथा // 690 // "वशानुगः" 691 इति / वशा:-आयत्ताः भक्ताः, ताननुगच्छतीति स तथा, भक्तवश्य इत्यर्थः / वशा:-वशवर्तिनः, अनुगा:-सेवका यस्मादिति वा // 691|| "विशाखः" 692 इति / विविधाः शाखा:-माध्यन्दिनीप्रभृतयो यस्मात् स तथा, वेदशाखाप्रवर्तकत्वात् / विगताः शाखा:-पुत्र-पौत्रादिलक्षणा यस्येति वा, संसारातीतस्वरूपत्वात् / / 692 / / “विश्वः" 693 इति / जगद्रूपत्वात् / / 693|| “विश्वामित्रः" 694 इति / विश्वामित्र:-मुनिविशेष:, ध्यातृध्येययोरभेदोपचारः // 694|| "विश्वात्मा" 695 इति / विश्वा-परिपूर्णा आत्मा-बुद्धिर्यस्य स तथा / 'आत्मा यत्नो धृतिर्बुद्धिः / / ' इत्यमरः / / 695 // "विश्वभावनः" 696 इति / विश्वं भावयति-वर्धयतीति स तथा // 696 / / "विश्वयोनिः" 697 इति / विश्वस्य-संसारस्य योनि:-कारणम् / / 697 // "विश्वजिद्" 698 इति / विश्वं जयतीति स तथा // 698 // "विश्वविद्" 699 इति / विश्वं वेत्तीति विश्ववित्, विश्वविषयकज्ञानवानित्यर्थः / / 699|| “विश्वेश्वरः" 700 इति / विश्वानां-देवानाम्, ईश्वरः / / 700 // // इति . पादसाहश्रीअकब्बरजल्लालदीनसूर्यसहस्रनामाध्यापकश्रीशत्रुञ्जयतीर्थ . . 116
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