Book Title: Surya Sahasra Nam Sangraha Trayam
Author(s): Dharmdhurandharsuri
Publisher: Jain Vidya Shodh Samsthan

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Page 125
________________ श्रीसूर्यसहस्रनामसङ्ग्रहत्रयम् 'ख:' इति पाठे खन्यते तमोऽनेनेति व्याख्या / / 735 // .. / "खतिलक:" 736 इति / खे-आकाशे तिलक इव तिलकः, तच्छोभाकारित्वात् / खे-नभसि तिलका:-अश्वविशेषा यस्येति वा। 'तिलकोऽश्व-द्रुमभेदयोः // ' इत्यनेकार्थः / / 736 // “खद्योतः" 737 इति / खे-नभसि द्योतते-प्रकाशत इति सः / खानइन्द्रियाणि प्रकाशत इति वा // 737 // "खोल्का" 738 इति / खाना-नाशकानाम्, उल्का-सन्तापकारी। 'नाशके इन्द्रिये क्लीबं भवेत् खं तु स्त्रियां खनौ // ' इत्येकाक्षरकोशः / / 738|| "खगः" 739 इति / खे-वियति गच्छतीति खगः // 739 // . "खगसत्तमः" 740 इति / खगाः-ग्रहाः, तेषु सत्तमः / खेन गम्यन्ते इति खगा:-पदार्थाः, तेषु सत्तमः, चक्षुर्विषयकपदार्थानामनित्यत्वेऽपि तद्विषयत्वेऽपि तस्य नित्यत्वात् / / 740 // "धर्मांशु" 741 इति / धर्माः-उष्णा अंशवो यस्येति स तथा // 741 // "घृणी" 742 इति / घृणा-दया विद्यते यस्य स तथा / / 742 / / “घृणिमान्" 743 इति / घृणि:-त्यागः, तद् विद्यते यस्य स तथा। 'घृणिर्भा किरणे त्यागे // ' इति धरण्युक्तेः / 'सहस्रगुणमुत्स्रष्टुमादत्ते हि रसं रविः // ' रघुवंशे इत्युक्तेः // 743 // "कपि:" 744 इति / कं-जलं रश्मिभिः पिबतीति कपिः // 744 / / "गभस्तिमाली" 745 इति / गभस्तय:-किरणाः, तेषां माला-परम्परा, साऽस्यास्तीति स तथा / गभस्तयः-स्वाहाः, तद्वान्; स्वाहा-स्वधाद्याहुतीनां तदायत्तत्वात् / ‘गभस्ति: किरणे सूर्ये ना स्वाहायां च योषिति // ' इति .. मेदिनिः / / 745 // "कुबेरः" 746 इति / कुबेर:-धनदः, तदंशीभूतत्वात् तदभिधेयता / कुः 121

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