Book Title: Surya Sahasra Nam Sangraha Trayam
Author(s): Dharmdhurandharsuri
Publisher: Jain Vidya Shodh Samsthan

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Page 135
________________ श्रीसूर्यसहस्रनामसङ्ग्रहवयम् "महाबलः" 852 इति / बलिनामपि बलप्रदातृत्वान्महाबलः / महद् बलं यस्मादिति वा / / 852 // "महायोगी" 853 इति / महान्-अनिर्वचनीयस्वरूपो योग:-मनो-वाक्कायनिरोधलक्षणो विद्यते यस्य स तथा // 853 / / "महायशाः" 854 इति / महद्-इयत्तावच्छिन्नपरिमाणरहितं यशो यस्य स तथा // 854 // "महावैद्यः" 855 इति / महांश्वासौ वैद्यश्च सः, बाह्याऽऽभ्यन्तररोगोपशामकत्वात् / / 856 / / "महावीर्यः" 856 इति / महद् वीर्य-पराक्रमो यस्य स तथा // 856 / / "महावराहः" 857 इति / महांश्चासौ वराहश्चेति स तथा; वसुंधरोद्धरणक्षमत्वात् / / 857|| "महावृत्तिः" 858 इति / महती वृत्ति:-जीवनोपायो यस्मात् स तथा।।८५८॥ "महाकारुणिकोत्तमः" 859 इति / महान्तश्च ते कारुणिकाश्च महाकारुणिकाः, तेषु उत्तमः-प्रशस्यः / / 859 / / "महामाय:" 860 इति / महती माया यस्य स तथा। महत्या मया-लक्ष्म्या अयते-उपजीव्यते इति वा / / 860 // “महामन्त्रः" 861 इति / महांश्वासौ मन्त्रश्चेति स:, गायित्र्यादिमन्त्रोपदेशकत्वात् / महेषु-उत्सवेषु आमन्त्रयत इति वा / 'महश्चोत्सव-तेजसोः / / ' इत्यमरः / सर्वत्र आत्महत: समानाधिकरणजातीययोरिति टेरात्वम् // 861 / / "महान्' 861 इति / मह्यते-पूज्यते सर्वैरिति महान्, सर्वोत्तम इति वा // 861 // "महारथः" 862 इति / महान्-सर्वत्राऽस्खलितगती रथ:-यानं यस्य स तथा // 862 // 131

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