Book Title: Surya Sahasra Nam Sangraha Trayam
Author(s): Dharmdhurandharsuri
Publisher: Jain Vidya Shodh Samsthan

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Page 136
________________ श्रीसूर्यसहस्रनामसङ्ग्रहत्रयम् "महाशक्तिः". 863 इति / महती शक्ति:-सामर्थ्यं जगद्रक्षणविषयकमस्येति स तथा / / 863 // "महाशनिः" 864 इति / महांश्चासौ अशनिश्चेति सः, दुष्टानां वज्रतुल्यत्वात् / / 864 // "महातेजाः" 865 इति / महत् तेजो यस्य स तथा / यदुक्तमन्यत्र . 'तेजस्विनो यदीयेन, तेजसा पावकादयः / तत्तेजो महदस्येति, महातेजाः प्रकीर्तितः // ' इति / / 865|| "महात्मा" 866 इति / महान्-सर्वव्यापक आत्मा-स्वरूपं यस्य स तथा // 866 / / "मुहूर्त:" 867 इति / मुहूर्तादिकालोपाधिनिर्मातृत्वात् तन्नामता / / 867 / / "महोत्साहः" 868 इति / महान् उत्साह:-आत्मगुणविशेषो यस्य स तथा, जगदुत्पत्ति-स्थिंति-लयार्थमुद्युक्तत्वात् / / 868|| "महेच्छः" 869 इति / महती-जगनिर्माणलक्षणा इच्छा यस्य स तथा // 869|| “महेन्द्रः" 870 इति / महांश्वासाविन्द्रश्चेति सः, सकलसुरेन्द्रादिभिः पूज्यत्वात् / / 870 // : “महेश्वरः" 871 इति / महांश्चासौ ईश्वरश्चेति सः, अचिन्त्या नन्तैश्वर्ययुक्तत्वात् / / 871 // ... “मिहिरः" 872 इति / मिहति-सिञ्चति स्वतेजोभिर्जगदिति सः / * अतिदयावानिति वा / 'मिहिरो भास्करेऽपि स्यान्मिहिरोऽतिदयावति // ' इति विश्वः / / 872 // "महित:" 873 इति / महित:-पूजितः // 873 // ..."महत्तरः" 874 इति / अतिशयेन महान् महत्तरः, सर्वाधिकते 132

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